13 सितंबर को गणेश चतुर्थी है, इसी तिथि पर सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी को कलंकी चतुर्थी भी कहते है। रिद्धि सिद्धि के दाता भगवान गणेश की इस दिन घर पर स्थापना की जाती है। तो चलिए जानते हैं आखिर क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी और आखिर क्यों पुराणों और शास्त्रों में कहा गया है कि गणेश चतुर्थी पर भूल कर भी चंद्रमा के दर्शन नहीं करना चाहिए।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार ऐसी है कहानी
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार गणेश के जन्म से जुड़ी कई कहानियां हैं। तो आइए जाने ऐसी ही दो कहानियों के बारे में कहते हैं कि, देवी पार्वती ने अपने शरीर से उतारी गई मैल से बनाया था। जब वो नहाने गई तो गणेश को अपनी रक्षा के लिए बाहर बिठा दिया। शिव भगवान जो पार्वती के पति हैं जब घर लौटे तो अपने पिता से अनजान गणेश ने उन्हें रोकने की कोशिश की जिससे शिव को क्रोध आ गया और उन्होने गणेश का सिर काट दिया।
इसलिए कहते हैं विघनकर्ता
जब देवी पार्वती को इस सब के बारे में पता चला तो वो शिव जी से रूष्ट हो गई जिस पर शिव ने उन्हें गणेश का जीवन वापस लाने का वादा कर उस पर हाथी का सिर लगा दिया और इस तरह फिर से गणेश का जीवनदान मिला। लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि देवताओं के अनुरोध करने पर शिव और पार्वती ने गणेश को बनाया था जिससे वो राक्षसों का वध कर सकें और यही कारण है कि उन्हें विघनकर्ता भी कहा जाता है।
मूषकराज के फिसलने के साथ ही गणपति गिर गए
छोटे से मूषकराज ने अपनी भरपूर शक्ति लगाकर उन्हें साधे रखने का भरपूर प्रयत्न किया। थोड़ी देर बाद मूषकराज की शक्ति जवाब दे गई और उनका संतुलन बिगड़ गया। मूषकराज के फिसलने के साथ ही गणपति भी मैदान में धाराशायी हो गए। गणपति को गिरते हुए किसी ने नहीं देखा था, पर चतुर्थी का चांद आकाश में चमक रहा था। गणपति को गिरते हुए होते देख चंद्रमा अपनी हंसी नहीं रोक पाए और हंस पड़े।
चंद्रमा की हंसी से गणपति हुए नाराज
चंद्रमा की हंसी गणपति जी को पंसद नहीं और उन्होंने क्रोध में उठकर तुरंत ही चंद्रमा को श्राप दे दिया कि, जो व्यक्ति चतुर्थी के चांद के दर्शन करेगा, वह अपयश का भागी होगा। जिसके कारण से इस दिन जो व्यक्ति चांद के दर्शन कर लेता है उसके ऊपर चोरी का झूठा आरोप लग जाता है।
चंद्रमा ने मांगी माफी
जब चंद्रमा को अपनी गलती का अहसास हुआ तो तुरंत उन्होंने गणेश जी से माफी मांगी। तब गणपति ने उन्हें श्राप मुक्त करते हुए कहते हैं कि ऐसा जरूर होगा लेकिन साल में एक बार ही इसका प्रभाव होगा। तभी से भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन से कलंक लगने की मान्यता चली आ रही है।…Next
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