कभी आपने सोचा है कि लोग हाथ से क्यों खाते हैं? क्यों प्राचीन समय में केलों के पत्तों पर ही खाना खाया जाता था? क्या यह महज एक परम्परा थी अथवा इसके पीछे कोई तार्किक आधार भी था? उपर्युक्त सारे प्रश्न सामान्य लोगों के मस्तिष्क में यदा-कदा उठते रहते हैं जिसका संतोषपूर्ण जवाब उन्हें किसी से नहीं मिलता. इस कारण वो अपने से बुद्धिमान समझे जाने वाले लोगों की सुनी-सुनायी हुई बातों पर आसानी से यकीन कर लेते हैं. पढ़िये हाथ से खाने संबंधी आपकी जिज्ञासाओं का उत्तर…
क्या यूँ ही खाते रहे हैं लोग हाथ से?
पंचत्तव जीवन के लिये आवश्यक माने गये हैं. मनुष्यों के हाथ और पैर को इन पंचत्तवों की वाहिका मानी जाती है. आयुर्वेद के अध्ययन से यह पता चलता है कि हर अँगुलि पंचतत्वों का विस्तार हैं. ये पाँच तत्व हैं अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल और आकाश. अँगूठे को अग्नि, तर्जनी को वायु, मध्यमा को आकाश, अनामिका को पृथ्वी और कनिष्ठा को जल का विस्तार माना गया है.
खाना खाते समय पाँचों उँगलियों को मिलाने से एक मुद्रा बनती है जिसे स्थानीय भाषा में ‘कौर’ कहते हैं. खाद्य पदार्थ समेत कौर को मुँह में इस प्रकार लेना चाहिये कि पाँचों उँगलियाँ मुँह के अंदर प्रविष्ट हो सके. इस तरह खाया जाने वाला भोजन केवल शरीर ही नहीं अपितु मस्तिष्क और आत्मा को भी पोषित करता है.
विज्ञान सम्मत केले की पत्तियाँ है पर्यावरण के अनुकूल
प्रचीन समय से ही भारत में खाने के लिये केले की पत्तियों का उपयोग किया जाता है. केले की पत्तियों में प्राकृतिक ऑक्सीकरण रोधी पॉलीफेनॉल की मात्रा अधिक होती है जिसमें ईजीसीजी प्रमुख है जो हरी चाय में भी पायी जाती है. इसके अलावा खाने के बाद केले की पत्तियों को किसी निश्चित स्थान पर फेंक दिया जाता था. आसानी से सड़ जाने के कारण केले की पत्तियों का पर्यावरण पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता है.
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कहाँ-कहाँ होता है इस्तेमाल?
ऐसा नहीं है कि केले की पत्तियों का विविध उपयोग केवल भारत में ही होता रहा है. भारत के अलावा इंडोनेशिया, फिलीपीन्स, मलेशिया, सिंगापुर और केंद्रीय अमेरिका सहित अन्य स्थानों पर भी लोग अलग-अलग त़रीकों से इसका प्रयोग करते हैं. Next….
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