पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश का जन्म माघ माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को माना गया है। इस बार यह तिथि आज 28 जनवरी को पढ़ रही है। भगवान गणेश का जन्म सृष्टि में फैले अहंकार और संकट का विनाश करने के लिए ही हुआ था। सबसे पहले उन्होंने भोलेनाथ का अहंकार नष्ट किया था। आज के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर होने के साथ ही औलाद पर आने वाली मुसीबत भी खत्म हो जाती है।
उबटन से गणेश का जन्म
शिवपुराण के अनुसार देवी पार्वती को पुत्र की लालसा हुई तो उन्होंने नहाने से पहले लगाए गए उबटन से पुतला बनाया और उसमें जान फूंक दी। पुतले से उत्पन्न बाल गणेश को उन्होंने स्नान करने से पहले द्वारपाल बनाकर सुरक्षा के लिए खड़ा कर दिया। देवी पार्वती ने आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति आए उसे अंदर मत आने देना।
मां के आदेश का पालन
भगवान भोलेनाथ इस बीच पार्वती से बात करने के लिए वहां आ पहुंचे और वह अंदर जाने लगे तो द्वारपाल बने बाल गणेश ने उनका रास्ता रोक दिया। भोलेनाथ उस बालक की उद्दंडता पर क्रोधित हो गए और द्वार से हटने की चेतावनी दी। बाल गणेश ने उनकी एक न सुनी और उन्हें जाने नहीं दिया तो दोनों के बीच युद्ध शुरु हो गया।
भोलेनाथ से युद्ध और पार्वती का विलाप
क्रोधित भोलेनाथ ने बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। इस बीच द्वार पर कोलाहल सुनकर पार्वती दौड़ी हुई आईं और वहां बाल गणेश का सिर धड़ से अलग पाकर व्याकुल हो गईं। भोलेनाथ ने बाल गणेश के बारे में पूछा तो देवी पार्वती ने पूरा घटनाक्रम सुना दिया। पार्वती ने बाल गणेश को तत्काल जीवित करने बात कही।
बाल गणेश के नए स्वरूप का जन्म
पुत्र के मोह में व्याकुल और क्रोधित पार्वती का रूप देखकर भोलेनाथ ने एक शिशु हाथी का सिर काटकर बाल गणेश के सिर की जगह लगाकर उन्हें जीवित कर दिया। पुत्र को जीवित पाकर पार्वती खुश हो गईं। मान्यता है कि बाल गणेश के जन्म लेने का समय शुक्ल पक्ष की चतुर्थी था। इसीलिए माघ माह की चतुर्थी को प्रतिवर्ष गणेश जयंती मनाई जाती है।
जन्म लेते ही पिता का अहंकार नष्ट किया
मान्यता है कि सृष्टि में जब पाप बढ़ने लगे और लोगों के मन में दुख ने वास करना शुरू कर दिया तो देवी पार्वती ने अपने उबटन से गणेश जी को जन्म दिया। गणेश ने जन्म लेते ही सबसे पहले अपने पिता भोलेनाथ के अहंकार और गुस्से का नाश किया। इसके बाद बाल गणेश ने सृष्टि से दुख और वैमनस्य का सफाया कर दिया। इसीलिए उन्हें विघ्नहर्ता, संकटमोचक भी कहा जाता है।
महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में जश्न
गणेश जयंती को गणेश चतुर्थी और विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इसे उत्तर भारत के साथ ही महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में प्रमुख रूप से मनाया जाता है। यहां लोग व्रत रखते हैं और गणेश की पूजा आराधना करते हैं। ऐसी मान्यता है गणेश चतुर्थी के दिन तय मुहूर्त में पूजा करने वाले के जीवन से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। इसके अलावा उसके बच्चों पर आने वाली मुसीबत भी टल जाती है।
पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
द्रिक पंचांग के मुताबिक माघ माह की शुक्ल चतुर्थी तिथि का प्रारंभ सुबह 08:21 से शुरु होगा जो अगले दिन 29 जनवरी को सुबह 10:45 पर खत्म होगा। इस दौरान लंबोदर की पूजा का शुभ मुहूर्त 28 फरवरी को सुबह 11:30 से दोपहर 01:39 तक रहेगा। इस दौरान व्रत का संकल्प लेकर भगवान गणेश की मिट्टी से बनी प्रतिमा को लाल कपड़े पर स्थापित करें और रोली, अक्षत, फूल और फलों को अर्पित करें। साथ ही तिल और गुड़ से बने लड्डुओं का भोग लगाएं।…Next
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