नाटा कद…. मोटा पेट… गज का सिर व एक दंत टूटा हुआ… यह है भगवान शिव व पार्वती के छोटे व नटखट पुत्र भगवान गणेश जी जो अपनी बुद्धिमानी एवं कुशलता के बल पर विश्वभर में जाने जाते हैं. परंतु गणेश को एक और विषय से भी याद किया जाता है और वो है उनका क्रोध जिसके एक बार बाहर आने पर उसे शांत करना कुछ असंभव सा हो जाता था. इसी क्रोध का सामना एक बार चंद्रमा को भी करना पड़ा जिसकी सजा वे आज तक भुगत रहे हैं.
पुराणों में विख्यात एक कथा के अनुसार एक बार गणेश एक परिजन के बुलावे पर मिठाई का सेवन करने गए. बचपन से ही गणेश को मिठाईयां खाने का इतना शौक था कि उन्हें इसके सामने कुछ भी नजर नहीं आता था और जब बात हो उनकी पसंदिदा मिठाई ‘मोदक’ की तो फिर वे सारे संसार को भूल जाते थे.
उस रात वे मिठाईयों का सेवन कर वापस अपने घर को लौट रहे थे लेकिन अभी भी उनके पास कुछ मिठाईयां शेष थीं जिन्हें वे संभालते हुए आ रहे थे. गणेश ने दिन भर इतनी मिठाई खाई थी कि उनका पेट काफी भारी हो गया था जिस कारण वे धीरे चल रहे थे. अचानक वे किसी चीज से टकराए व धरती पर गिर गए. उनके गिरने से उनके हाथ से सारी मिठाईयां इधर-उधर फैल गईं.
उस सुनसान रात में गणेश को लगा कि शायद इस तरह से गिरते हुए उन्हें किसी ने नहीं देखा और वे जल्दी से अपनी मिठाईयों को एकत्रित करने में जुट गए लेकिन दूसरी ओर चंद्रमा उन्हें ऐसा करते हुए देख रहे थे. गणेश के भारी व मोटे पेट और साथ में हाथी की भांति सिर वाले बच्चे को देख चंद्रमा अपनी हंसी संभाल ना सके और गणेश का मजाक बनाते हुए जोर-जोर से हंसने लगे.
ऐसा देख गणेश बेहद शर्मिंदा हुए लेकिन दूसरे ही पल उन्हें यह आभास हुआ कि उनकी मदद करने के स्थान पर चंद्रमा उनका मजाक बना रहे थे. वे तुरंत खड़े हुए व चंद्रमा को चेतावनी देते हुए कहा, “चंद्र! तुम ने इस कदर मेरा मजाक बनाया. तुम क्या सोचते हो कि तुम बहुत बुद्धिमान हो? आज मैं तुम्हे श्राप देता हूं कि आज के बाद तुम इस विशाल गगन पर राज नहीं कर सकोगे. तुम अपनी रोशनी यूं सारे जगत में फैला नहीं सकोगे. आज के बाद कोई भी तुम्हें देख ना सकेगा.”
यह सुन चंद्रमा भयभीत हो गए और सोचने लगे कि यदि ऐसा हुआ तो कोई भी मुझे देख ना सकेगा और मैं अपना उज्जवल प्रकाश सारे संसार पर बरसा ना सकूंगा. वे तुरंत आसमान से उतर गणेश के चरणों में आ गए और कहने लगे, “हे गणेश, मुझे क्षमा कीजिये. मैं अत्यंत घमंड से भर गया था और जान ना सका कि कितनी बड़ी भूल कर रहा हूं. कृप्या मुझे क्षमा कर अपने इस क्रोध से मुक्त कीजिये.”
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चंद्रमा को यूं लाचार व उनके घमंड को टूटता देखा गणेश समझ गए कि चंद्रमा को अपनी गलती का आभास हो गया है. भगवान गणेश मुस्कुराए और उन्होंने चंद्र देवता को माफ किया परंतु उन्होंने कहा, “चंद्र, मैं तुम्हारे प्रति कहे गए अपने शब्दों को वापस तो नहीं ले सकता लेकिन इसके स्थान पर एक वरदान जरूर देता हूं. तुम्हारा आकार धीरे-धीरे आव्शय कम होगा लेकिन केवल एक बार ही ऐसा होगा जब कोई भी तुम्हे देख ना सकेगा. इसके बाद तुम फिर से समय के साथ वापस बढ़ते जाओगे और फिर 15 दिनों के अंतराल में अपने सम्पूर्ण भेष में नजर आओगे.”
यह सुन चंद्रमा को कुछ प्रसन्नता हुई और उन्होंने भगवान गणेश का आभार प्रकट किया. चंद्रमा को कुछ खुश देख गणेश बोले, “लेकिन मैं एक और बात कहना चाहूंगा.” यह सुन चंद्रमा फिर से चौकन्ने हो गए.
गणेश मुस्कुराए व बोले, “डरने वाली बात नहीं है. तुमने चतुर्थी वाले दिन मेरा मजाक बनाया इसलिए भविष्य में यदि किसी ने भी चतुर्थी के दिन भूल से भी तुम्हारे दर्शन किये तो वो संकट में पड़ जाएगा.”
यह सुन चंद्रमा कुछ मायूस हो गए. यह देख गणेश बोले, “लेकिन इसमें चिंता का विषय नहीं है. यदि किसी ने इस दिन तुम्हारे दर्शन कर भी लिये तो वे ‘कृष्ण एवं श्यामन्तक रत्न की कथा सुन इस कठिनाई से बाहर आ सकेंगे.”
गणेश जी के इन्हीं उपदेशों के बाद तब से आज तक चंद्रमा अपनी उसी सजा का पालन कर रहा है. अपनी उपस्थिति पूर्ण रूप से खोने से पहले चंद्रमा धीरे-धीरे आकार में कम होने लगता है लेकिन बाद में फिर से बढ़ता हुआ अपने पूर्ण आकार में प्रकट होता है जिसे ‘पूर्णमासी’ भी कहा जाता है.
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