Menu
blogid : 19157 postid : 1388371

राजा दुपद्र से बदला लेने के लिए गुरु द्रोण ने अर्जुन को दिया था प्रशिक्षण, बचपन में अश्वत्थामा का हुआ था अपमान

वेदों और पुराणों में सबसे बड़ा पाप किसी के मन को आघात पहुंचाने को माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि किसी भी मनुष्य को किसी अन्य मनुष्य से ऐसी कोई भी बात नहीं करनी चाहिए जिससे कि उसे ठेस पहुंचे। साथ ही किसी का उपहास उड़ाकर उसे नीचा दिखाना भी पाप की श्रेणी में सबसे ऊपर आता है, क्योंकि एक छोटी-सी बात किसी मनुष्य को किस तरह आहत कर सकती है, इससे जुड़ी एक कहानी महाभारत में मिलती है। महाभारत में वर्णित एक कहानी के अनुसार गुरू द्रोणाचार्य को अपने पुत्र अश्वत्थामा के साथ किए गए एक उपहास ने इतना आहत कर दिया था कि उन्होंने इस उपहास का प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा कर ली। ये उस समय की बात है जब गुरू द्रोणाचार्य पाडंवों और कौरवों के गुरू के रूप में नियुक्त नहीं हुए थे। द्रोणाचार्य की शिक्षा-दीक्षा द्रुपद के साथ एक गुरूकुल में हुई थी।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal5 Sep, 2019

 

pic2

 

दोनों बाल्यावस्था से ही एक दूसरे के मित्र थे। शिक्षा-दीक्षा पूरी होने के बाद द्रुपद पांचाल देश के राजा बन गए जबकि द्रोण को जीविका निर्वाह के लिए कोई साधन नहीं मिल पाया। गुरू द्रोण के दिन घोर गरीबी में बीत रहे थे। वे अपनी पत्नी और पुत्र अश्वत्थामा के लिए दो वक्त की रोजी-रोटी का भी प्रबंध नहीं कर सकते थे। अश्वत्थामा पांचाल देश के राजा के बालकों के साथ खेला करता था। इस दौरान अपनी पत्नी के कहने पर गुरू द्रोण ने राजा दुपद्र से सहायता मांगने का निश्चय किया। द्रोण राजा के दरबार में जा ही रहे थे कि अचानक उन्होंने एक घटना देखी। अश्वत्थामा को राजवंश के कुछ बालक दूध पिला रहे थे। जब गुरू द्रोण ने समीप आकर देखा तो वास्तव में वो दूध नहीं बल्कि चावल के आटे को पानी में मिलाकर बनाया गया पदार्थ था। सभी बच्चे अश्वत्थामा का उपहास उड़ा रहे थे जबकि बालक अश्वत्थामा को ये अपने साथ हुए छल के बारे में ज्ञात ही नहीं था। वे बड़े प्रसन्न होते हुए अपने पिता द्रोण के समीप आकर बोला ‘पिताजी, मैंने आज दूध पिया. मेरी आत्मा तृप्त हो गई’।

अपने पुत्र के इस भोलेपन को देखकर गुरू द्रोण के आंसू छलक पड़े। अपने दुख को दबाते हुए वो इसकी शिकायत करने राजा दुपद्र के पास पहुंचे। राजा दुपद्र ने गुरू द्रोण की बात को गंभीरता से न लेते हुए उनका उपहास उड़ाना शुरू कर दिया। साथ ही उनका बहुत अपमान भी किया। अपने मित्र के मुख से ऐसे कटु वचन सुनकर गुरू द्रोण को बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने अपमान और अपने पुत्र अश्वत्थामा के साथ हुए छल का प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा कर ली।उन्होंने इसके लिए अर्जुन को विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया, जिससे कि भविष्य में राजा दुपद्र को उनके किए का दंड मिल सके।..Next

 

Read more:

इस पाप के कारण छल से मारा गया द्रोणाचार्य को, इस योद्धा ने लिया था अपने पूर्वजन्म का प्रतिशोध

अपने माता-पिता के परस्पर मिलन से नहीं बल्कि इस विचित्र विधि से हुआ था गुरु द्रोणाचार्य का जन्म

यह योद्धा यदि दुर्योधन के साथ मिल जाता तो महाभारत युद्ध का परिणाम ही कुछ और होता

 

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh