गुरूद्वारा सिक्ख संप्रदाय को मानने वालों का पवित्र स्थल माना जाता है. यूँ तो दिल्ली में आठ प्रसिद्ध गुरूद्वारे हैं जिनमें बंगला साहब प्रमुख है. इसका इतिहास सिक्खों के आठवें गुरू हर किशन सिंह जी और एक मिलिट्री जनरल से जुड़ा हुआ है.
कहा जाता है कि वर्ष 1644 में दिल्ली में चेचक की बीमारी फैली थी. चेचक के कारण कई लोग काल के गाल में समाते जा रहे थे. उस समय दिल्ली में सिक्खों के आठवें गुरू हर किशन सिंह जी का आगमन हुआ. आठ वर्ष की उम्र में दिल्ली पधारे गुरू हर किशन को राजा जय सिंह ने अपना मेहमान बनाया. इस प्रवास के दौरान बड़ी संख्या में सिक्ख संप्रदाय के लोग उनके दर्शन को आने लगे. गुरू हर किशन सिंह चेचक पीड़ित और उसके डर के साये में जी रहे लोगों की सहायता करने लगे. विश्राम के लिये मिले बंगले के समीप निर्मित कुएँ के शुद्ध जल और उनके स्पर्श से लोग ठीक होने लगे.
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हजारों श्रद्धालुओं को ठीक करने के दौरान गुरू हर किशन बीमार पड़ गये जिसके कारण उसी बंगले में उन्हें अपना देह त्यागना पड़ा. जिस स्थान पर यह गुरूद्वारा अवस्थित है उसका निर्माण राजा जय सिंह ने अपने बंगले के तौर पर करवाया था. वह स्थान पहले जय सिंह पुरा के नाम से विख्यात रहा जिसे अब लोग राजीव चौक और कनॉट प्लेट के नाम से जानते हैं.
मान्यता यह है कि एक मिलिट्री जनरल सरदार बाघेल सिंह ने बंगला साहब गुरूद्वारे का निर्माण किया. यह गुरूद्वारा ठीक उसी स्थान पर बना है जहाँ गुरू हर किशन सिंह चेचक पीड़ित लोगों की सेवा करते थे. बाघेल सिंह ने दिल्ली में आठ प्रमुख गुरूद्वारों का निर्माण करवाया जिसमें से बंगला साहब गुरूद्वारा एक था. सिक्खों के आठवें गुरू द्वारा उपयोग किये गये कुएँ को सरोवर में तब्दील कर दिया गया. सिक्ख संप्रदाय को मानने वालों के लिये यह जल अमृत सदृश्य है. विश्व के सुदूर कोनों से आये सिक्ख इस जल को अपने साथ लेकर जाते हैं. इस गुरूद्वारे का गुंबद अष्टधातुओं से निर्मित है. इसके निर्माण में सोना, चाँदी, पारा, कांस्य, अभ्रक, लोह इत्यादि का प्रयोग हुआ है.Next….
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