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तो ये है रामसेतु में प्रयोग किये गए पत्थरों का वैज्ञानिक पहलू

ऐसा कई बार होता है जब हम किसी विषय या वस्तु पर तब तक यकीन नहीं करते, जब तक उसे अपनी आंखों से देख ना लें. धर्म-अध्यात्म से जुड़ी कुछ बातें भी इसी तरह की हैं. माता सीता को लंका से लाने के लिए श्रीराम की वानर सेना द्वारा बनाया गया ‘राम सेतु’ क्या सच में कभी बनाया गया था या नहीं, यह हिन्दू धर्म मानने वालों के लिए एक अहम प्रश्न है. ना केवल धार्मिक इतिहास बल्कि विज्ञान द्वारा भी इस प्रश्न का हल निकालने का पूरा प्रयास किया गया है.


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क्या है रामसेतु?


हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जब असुर सम्राट रावण माता सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया था तब भगवान श्रीराम ने वानरों की सहायता से समुद्र के बीचो-बीच एक पुल का निर्माण किया था. इस पुल को ‘रामसेतु’ नाम दिगा गया. आज के युग में इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘एडम्स ब्रिज’ के नाम से भी जाना जाता है. इसी रामसेतु पुल से श्रीराम की पूरी वानर सेना गुजरी और लंका पर विजय हासिल की.


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कहां बना?


राम की वानर सेना द्वारा बनाया गया रामसेतु पुल आज के समय में भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है. यदि वैज्ञानिकों की मानें, तो कहा जा है कि एक समय था जब यह पुल भारत तथा श्रीलंका को भू-मार्ग से आपस में जोड़ता था. कहा जाता है कि निर्माण करने के बाद इस पुल की लम्बाई 30 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर थी. आज के समय में भारत तथा श्रीलंका के इस भाग का पानी इतना गहरा है कि यहां यातायात साधन बिलकुल बंद है, लेकिन फिर भी उस समय भगवान राम ने इस स्थान पर एक पुल बनाया था.


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क्या कहता है इतिहास?


धार्मिक इतिहास पर गौर करें तो मान्यता है कि भगवान राम ने माता सीता को लाने के लिए बीच रास्ते आने वाले इस समुद्र को अपने तीर से सूखा कर देने का सोचा लेकिन तभी समुद्र से आवाज आई. समुद्र देवता बोले, “हे प्रभु, आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थरों का एक पुल बनाएं. मैं इन सभी पत्थरों का वजन सम्भाल लूंगा.” इसके बाद पूरे वानर सेना तरह-तरह के पत्ते, झाड़ तथा पत्थर एकत्रित करने लगी. पत्थरों को एक कतार में किस तरह से रखकर एक मजबूत पुल बनाया जाए इस पर ढेरों योजनाएं भी बनाई गईं.


ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार रामसेतु पुल को 1 करोड़ वानरों द्वारा केवल 5 दिन में तैयार किया गया था. लेकिन इस पुल पर रखे पत्थर और उनका बिना किसी वैज्ञानिक रूप से जुड़ना आज तक हर किसी के जहन का सवाल बना हुआ है.


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कैसे बना पुल?


रामायण के अनुसार रामसेतु पुल को दो अहम किरदारों नल एवं नील की मदद से बनाया गया था. कहा गया है कि उनके स्पर्श से कोई भी पत्थर इस समुद्र में डूबता नहीं था. इन पत्थरों को रामेश्वर में आई सुनामी के दौरान समुद्र किनारे देखा गया था और आपको जानकर यह अचंभा होगा कि आज भी पानी में डालने पर यह पत्थर डूबते नहीं हैं.


विज्ञान की दिशा से देखें तो ‘प्यूमाइस’ नाम का एक पत्थर होता है. यह पत्थर देखने में काफी मजबूत लगता है लेकिन फिर भी यह पानी में पूरी तरह से डूबता नहीं है, बल्कि उसकी सतह पर तैरता रहता है. कहते हैं यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आकार लेते हुए अपने आप बनता है. ज्वालामुखी से बाहर आता हुआ लावा जब वातावरण से मिलता है तो उसके साथ ठंडी या उससे कम तापमान की हवा मिल जाती है. यह गर्म और ठंडे का मिलाप ही इस पत्थर में कई तरह से छेद कर देता है, जो अंत में इसे एक स्पॉंजी जिसे हम आम भाषा में खंखरा कहते हैं, इस प्रकार का आकार देता है.


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तो कहां है आज रामसेतु?


प्यूमाइस पत्थर के छेदों में हवा भरी रहती है जो इसे पानी से हल्का बनाती है, जिस कारण यह डूबता नहीं है. लेकिन जैसे ही धीरे-धीरे इन छिद्रों में पानी भरता है तो यह पत्थर भी पानी में डूबना शुरू हो जाता है. शायद यही कारण है रामसेतु पुल के डूबने का.


नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस, नासा द्वारा रामसेतु की सैटलाइट से काफी तस्वीरें ली गई हैं. नासा का यह भी मानना है कि भारत के रामेश्वर से होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक एक पुल आवश्य बनाया गया था, लेकिन कुछ मील की दूरी के बाद इसके पत्थर डूब गए, लेकिन हो सकता है कि वे आज भी समुद्र के निचले भाग पर मौजूद हों. Next….


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