नौकरी कब बदलें और कब नई जगह ज्वाइन करें इसके लिए ज्योतिष शास्त्र में शुभ घडि़यां और सही समय का वर्णन किया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा के बीच आने वाले 8 दिनों को नौकरी समेत कई अन्य कार्यों के लिए खास बताया गया है। खास बात ये है कि इन दिनों को शुभ नहीं बताया गया है।
आठ दिनों से जुड़ा अपशगुन
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक का प्रारंभ माना गया है और यह पूर्णिमा पर जाकर खत्म होता है। मान्यता है कि होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का अंत हो जाता है। इस बार यह होलाष्टक तिथि 03 मार्च से शुरू होकर 09 मार्च को होलिका दहन के साथ खत्म होगा। होलाष्टक के इन 8 दिनों को अमंगलकारी कहने के पीछे दो पौराणिक घटनाओं का वर्णन मिलता है। इस दौरान किसी भी शुभ काम को अपशगुन माना गया है।
नौकरीपेशा के लिए खास महत्व
होलाष्टक के 8 दिनों के दौरान कई कार्यों को वर्जित बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन वर्जित कार्यों में नौकरीपेशा के लिए भी खास जानकारी बताई गई। मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के दिनों में नौकरी नहीं बदलनी चाहिए। ऐसा करने से तरक्की के रास्तों में बाधा खड़ी हो जाती है। इन दिनों में न तो इस्तीफा देना चाहिए और न ही कहीं नौकरी ज्वाइन करनी चाहिए। इन दिनों में रोजगार बदलने वालों के लिए भविष्य शुभ नहीं होता है। इसलिए फायदे तो नहीं बल्कि नुकसान उठाना पड़ सकता है।
भूलकर भी इन दिनों में न करें विवाह
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक के अमंगलकारी 8 दिनों में दांपत्य जीवन की शुरुआत को पूर्णता वर्जित किया गया है। इन दिनों में किसी भी तरह से विवाह करने की मनाही है। ऐसा कहा जाता है कि इन दिनों में विवाह से वैवाहिक जोड़ा कभी खुश नहीं रह पाता है और उसका दांपत्य जीवन ज्यादा दिन नहीं चल पाता। इसके अलावा इन दिनों में नए रिश्तों की शुरुआत या संबंधों का जुड़ाव करना भी वर्जित है।
जमीन, दुकान, मकान के लिए
होलाष्टक के 8 दिनों में नई संपत्ति खरीदने को लेकर भी मनाही है। इस दौरान वाहन, जमीन, दुकान, मकान, जानवर, जेवर खरीदना भी पूरी तरह से वर्जित है। इसके आलावा इन दिनों गृहप्रवेश को पूरी तरह से मना किया गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में खुशहाली नहीं आती है और दरिद्रता का वास हो जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दौरान नए व्यापार की शुरुआत करने पर भी पाबंदी लगाई है। ऐसा करना अपशगुन माना जाता है जो कंगाल बना देता है।
क्या है होलाष्टक और क्यों मनाते हैं
होलाष्टक को लेकर दो पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। शिवपुराण के अनुसार माता पार्वती के अग्निकुंड में समाहित होने के बाद शिव वैराग्य धारण कर तपस्या में लीन हो गए। इससे सृष्टि में हाहाकार मच गया और उनको जगाने के लिए कामदेव और रति ने मोहक नृत्य कर शिव की तपस्या भंग कर दी। कामदेव से नाराज शिव ने गुस्से में अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भष्म कर दिया। रति और देवताओं की विनती के बाद 8 दिन बाद शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। इन 8 दिनों को होलाष्टक कहा गया और इन्हें अशुभ बताया गया।
प्रह्लाद और विष्णु
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु भक्त हिरण्यकश्यप पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए उसकी बुआ होलिका ने जलाने का प्रयोजन बनाया। 8 दिन की तैयारियों के बाद प्रह्लाद को लेकर होलिका अग्निचिता पर बैठ गई। कभी न जलने का वरदान पाने वाली होलिका तो जलकर भष्म हो गई लेकिन प्रह्लाद भगवान विष्णु की कृपा से जीवित बच गए। इन 8 दिनों को होलाष्टक कहा गया और इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को वर्जित बताया गया है। मान्यताओं के अनुसार जब प्रह्लाद जीवित बच गए तो खुशी में अगले दिन रंगों से घरों को सजाया गया और तभी से होली की परंपरा का शुभारंभ भी कहा जाता है।…Next
Read More:
सबसे पहले कृष्ण ने खेली थी होली, जानिए फुलेरा दूज का महत्व
इन तारीखों पर विवाह का शुभ मुहूर्त, आज से ही शुरू करिए दांपत्य जीवन की तैयारी
जया एकादशी पर खत्म हुआ गंधर्व युगल का श्राप, इंद्र क्रोध और विष्णु रक्षा की कथा
श्रीकृष्ण की मौत के बाद उनकी 16000 रानियों का क्या हुआ, जानिए किसने किया कृष्ण का अंतिम संस्कार
Read Comments