हिंदू कैलेंडर के मुताबिक होलाष्टक के दिनों को सबसे अमंगलकारी दिन माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करना पूरी तरह वर्जित बताया गया है। इस बार होलाष्टक 03 मार्च से शुरू होकर 09 मार्च तक रहेगा। आईए जानते हैं क्या है होलाष्टक और इसका महत्व।
होलाष्टक के 8 दिन
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक का प्रारंभ माना गया है और यह पूर्णिमा पर जाकर खत्म होता है। होलाष्टक के साथ ही होलिका दहन की तैयारियां शुरू करने की परंपरा भी है। मान्यता है कि होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का अंत हो जाता है। इस बार यह होलाष्टक तिथि 03 मार्च से शुरू होकर 09 मार्च को होलिका दहन के साथ खत्म होगा।
होलाष्टक प्रारंभ की कथा
होलाष्टक की शुरुआत कैसे हुई इस बारे में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार ताड़कासुर का वध भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र से होना था। लेकिन, पिता द्वारा पति भोलेनाथ के अपमान के क्रोध में देवी पार्वती ने खुद को अग्निकुंड में समाहित कर दिया। पार्वती के जाने से दुखी भोलेनाथ वैराग्य धारण कर तपस्या में लीन हो गए। देवताओं के कहने पर कामदेव और रति ने भोलेनाथ की तपस्या भंग कर दी। इससे नाराज भोलेनाथ कामदेव को भष्म कर दिया।
कामदेव और प्रह्लाद
कामदेव जिस दिन भष्म हुए वह फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी थी। देवताओं के विनय करने पर भोलेनाथ ने आठ दिन बाद कामदेव को पुर्नजीवित कर दिया। इन 8 दिनों को अशुभ माना गया और होलाष्टक कहा गया। जिस दिन कामदेव को पुनर्जीवन मिला उस दिन होलाष्टक खत्म माना गया। एक अन्य कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद को भष्म करने के लिए उसकी बुआ होलिका प्रह्लाद को अग्निशैय्या पर लेकर बैठ गई।
8 दिन बाद होली पर्व की परंपरा शुरू
8 दिनों में तैयार की गई अग्निशैय्या में नवें दिन भी प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और वह जीवित बच गए। जबकि उनकी बुआ होलिका जलकर भष्म हो गई। इन 8 दिनों को ही होलाष्टक कहा गया। जिस दिन प्रह्लाद अग्निशैय्या से उतरे वह फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा थी। प्रह्लाद के बचने पर आनंद मनाया गया। इसे होली पर्व की शुरुआत भी माना जाता है।
ये कार्य पूरी तरह वर्जित
इन दो बड़ी घटनाओं के चलते होलाष्टक के आठ दिनों को बेहद अमंगलकारी और अशुभ बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य करना पूरी तरह वर्जित है। इन कार्यों में विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार, हवन यज्ञ, संपत्ति की खरीददारी, वाहन की खरीदारी को वर्जित बताया गया है। इसके अलावा इस दौरान नौकरी ज्वाइन करने को भी अशुभ कहा गया है। हालांकि, होलाष्टक के दौरान आराध्यों की पूजा अर्चना की कोई मनाही नहीं है। बल्कि पूजा आराधना से अनिष्ट की आशंका खत्म होती है।…Next
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