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जानें क्यों मनाया जाता है रंगो का त्यौहार होली, ये कहती हैं पौराणिक कथाएं

रंगो का उत्सव होली हर साल बसंत ऋतु के मौसम में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है और ये तीन दिनों तक चलता है। पहले दिन रात में होलिका दहन होता है। इसके बाद अगले दिन होली खेली जाती है और उसके अगले दिन भाई दूज के साथ ये त्योहार खत्म हो जाता है। होली के बारे में कहा जाता है कि इस दिन आपसी बैर भुलाकर दुश्मन भी गले लग जाते है। ऐसे में चलिए जानते हैं आखिर क्यों मनाया जाता है रंगो का ये खास त्यौहार।

Shilpi Singh
Shilpi Singh21 Mar, 2019

 

 

क्यों मनाई जाती है होली?

प्राचीन काल में एक असुर राजा था जिसका नाम हिरण्यकश्यप था, उसने कई वर्षों कर कठिन तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न घर से बाहर. यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए। ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा और सभी से जबरन अपनी पूजा करवाने के लिए अत्याचार करने लगा। हिरण्यकश्यप को कुछ समय बाद पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उसने प्रह्लाद रखा। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी।

 

 

हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की है कहानी

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा न करे। प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने का हर संभव प्रयास किया। उसे पहाड़ी से फेंका, विषैलें सांपो के साथ छोड़ दिया. लेकिन व प्रभु-कृपा से वह हर बार बचता रहा। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई। होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। उसको वरदान में एक ऐसी चादर मिली हुई थी, जिसे ओढ़कर वह आग में नहीं जल सकती थी।

 

 

बुराई पर अच्छाई की विजय है कहानी

होलिका प्रह्लाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से वरदान वाली चादर ओढ़ धूं-धूं करती आग में जा बैठी। तभी भगवान की कृपा से बहुत तेज आंधी चली और वह चादर उड़कर बालक प्रह्लाद पर आ गई और होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई। इस प्रकार प्रह्लाद एक बार फिर बच गए। इसके बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से मार डाला। तभी से बुराई पर अच्छाई की विजय के लिए होली का त्योहार मनाया जाने लगा।….Next

 

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