रंग और उल्लास का पर्व होली बुधवार को है। रंगोत्सव यानी धुरड्डी गुरुवार को होगी। काफी समय बाद दोनों ही दिन मातंग योग बन रहा है होली के मौके पर होलिका दहन का एक विशेष महत्व है। इस दिन बड़ी संख्याओं में महिलाएं होली की पूजा करती हैं, मान्यता है कि इस पूजा से घर में सुख और शांति आती है। होली का त्योहार बुराई रुपी होलिका के अंत और प्रह्लाद के रुप में अच्छाई की जीत को दर्शता है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार होलिका दहन को होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। तो चलिए जानते हैं आखिर क्यों खास है होलिका दहन।
क्या है होलिका की कहानी
कहा जाता है कि हिरण्याकश्यप नाम का राजा था, उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया था कि वह भगवान की जगह उसकी पूजा करें। लेकिन उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसने अपने पिता के इस आदेश को न मान कर भगवान के प्रति अपनी आस्था हमेशा बनाए रखी।
होलिका दहन क्यों की जाती है
एक दिन हिरण्याकश्यप ने अपने बेटे को सजा देने का फैसला किया। होलिका हिरण्याकश्यप की बहन थी अपने भाई की बात मनाते हुए होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे वह अपने शरीर पर लपेट लेती थी तो आग उसे छू भी नहीं सकती थी। वहीं आग में बैठने के दौरान प्रह्लाद भगवान विष्णु का स्मरण करता रहा। उसके बाद होलिका का वह कपड़ा उड़कर प्रह्लाद के उपर आ गया जिसकी वजह से उसकी जान बच गई और होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। तभी से होली के अवसर पर होलिका दहन की यह प्रभा चली आ रही है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन का मुहूर्त किसी भी त्योहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण है। इस बार होलिका दहन का समय रात्रि: 8:58 बजे से 12:13 बजे तक है। भद्रा पूंछ शाम 5:24 से 6:25 बजे तक। वहीं भद्रा मुख शाम 6:25से रात 8:07 बजे तक।
इसलिए भद्रा में नहीं जलती होली
भद्रा में होलिका दहन नहीं होता है। भद्रा को विघ्नकारक माना जाता है। इस दौरान होलिका दहन से हानि एवं अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसीलिए भद्रा काल छोड़कर होलिका दहन किया जाता है। विशेष परिस्थितियों में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जाता है। मगर इस वर्ष अच्छी बात यह है कि भद्रा रात के दूसरे पहर में ही समाप्त हो जाएगी।
पश्चिम भारत में मात्र 10 मिनट
इस बार होलिका दहन में समय बदला है। सामान्यत: यह शाम 4 बजे के बाद होता है लेकिन इस बार भद्र मुख के कारण होलिका दहन का कार्यक्रम थोड़ी देर से शुरू होगा। मुंबई और पश्चिम भारत में होलिका दहन के लिए काफी कम समय मिलेगा। मात्र 10 मिनट। यह 8.57 से शुरू होकर 9.09 तक चलेगा।
क्या चढ़ाया जाता है होलिका दहन में
इस समय गेहूं की फसल कटती है, इसलिए ईश्वर को होलिका दहन के जरिए भगवान को गेंहू की बाली समर्पित की जाती है। साथ ही पूजा में चावल, फूल, साबूत मूंग, साबूत हल्दी, नारियल और गोबर की गुलरियां शामिल की जाती हैं। पूजन की सभी सामग्रियां अर्पित करने के बाद होली की परिक्रमा करते हुए इसमें पानी चढ़ाया जाता है। ये सब करना होलिका के लिए शुभ माना जाता है।
होलिका दहन की राख से स्नान
ऐसा माना कि होलिका दहन की राख से स्नान करने पर हर रोग से मुक्ति मिलती है।साथ ही लोग होलिका दहन की आग में पांच उपले भी जलाते हैं ताकि उनकी सभी मुश्किलें खत्म हो जाएं और होलिका माता से प्रार्थना करते हैं कि उनकी सभी परेशानियां समाप्त हो जाएं।….Next
Read More:
शिव को इस कारण धारण करना पड़ा था नटराज रूप, स्कंदपुराण में वर्णित है कहानी
कुंभ 2019 में आ रहे हैं डुबकी लगाने, तो इन धार्मिक स्थलों के भी जरुर करें दर्शन
कुंभ 2019: प्रयागराज में शक्तिपीठ के भी करें दर्शन, जहां गिरी थी सती की अंगुलियां
Read Comments