रंगों का त्योहार होली ज्लद ही आने वाला है, होली के मौके पर होलिका दहन का एक विशेष महत्व है। होली का त्योहार बुराई रुपी होलिका के अंत और प्रह्लाद के रुप में अच्छाई की जीत को दर्शता है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार होलिका दहन को होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। तो चलिए जानते हैं आखिर क्यों खास है होलिका दहन।
क्या है होलिका की कहानी
कहा जाता है कि हिरण्याकश्यप नाम का राजा था, उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया था कि वह भगवान की जगह उसकी पूजा करें। लेकिन उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसने अपने पिता के इस आदेश को न मान कर भगवान के प्रति अपनी आस्था हमेशा बनाए रखी।
होलिका दहन क्यों की जाती है
एक दिन हिरण्याकश्यप ने अपने बेटे को सजा देने का फैसला किया। होलिका हिरण्याकश्यप की बहन थी अपने भाई की बात मनाते हुए होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे वह अपने शरीर पर लपेट लेती थी तो आग उसे छू भी नहीं सकती थी। वहीं आग में बैठने के दौरान प्रह्लाद भगवान विष्णु का स्मरण करता रहा। उसके बाद होलिका का वह कपड़ा उड़कर प्रह्लाद के उपर आ गया जिसकी वजह से उसकी जान बच गई और होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। तभी से होली के अवसर पर होलिका दहन की यह प्रभा चली आ रही है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन सूरज ढलने के बाद प्रदोष काल शुरू होने के बाद जब पूर्णमासी तिथि चल रही होती है तब किया जाता है। इस साल होलिका दहन 7.30 मिनट तक भद्रा के खत्म होने पर होलिका दहन किया जा सकेगा। होलिका दहन के लिए घर में और बाहर होलिका की पूजा की जाती है।
क्या चढ़ाया जाता है होलिका दहन में
इस समय गेहूं की फसल कटती है, इसलिए ईश्वर को होलिका दहन के जरिए भगवान को गेंहू की बाली समर्पित की जाती है। साथ ही पूजा में चावल, फूल, साबूत मूंग, साबूत हल्दी, नारियल और गोबर की गुलरियां शामिल की जाती हैं। पूजन की सभी सामग्रियां अर्पित करने के बाद होली की परिक्रमा करते हुए इसमें पानी चढ़ाया जाता है। ये सब करना होलिका के लिए शुभ माना जाता है।
होलिका दहन की राख से स्नान
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