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अलौकिक शक्तियों के कारण अजर अमर हैं ये 4 ऋषि

हिंदू धर्मग्रंथों में सतयुग और त्रेता युग के कई महान योद्धाओं के चिरंजीव होने का उल्लेख किया गया है। लेकिन कई ऐसे ऋषि और मुनि भी हुए हैं जो चिंरजीव यानी अजर अमर हैं। इनमें पांडवों के गुरु कृपाचार्य भी शामिल हैं। आइए जानते हैं कौन से ऋषि कलयुग में भी जीवित हैं।

Rizwan Noor Khan
Rizwan Noor Khan22 Apr, 2020

 

 

 

 

हर युग में मौजूद दुर्वासा ऋषि
वैदिक और पौराणिक ग्रंथों में दुर्वासा ऋषि का कई जगह वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि वह सतयुग से लेकर कलयुग तक हर युग में जीवित रहे हैं। इसलिए आज भी वह जीवित हैं। महर्षि अत्रि के पुत्र दुर्वासा का जन्म भगवान शिव की कृपा से देवी अनुसुइया के गर्भ से हुआ था। दुर्वासा ऋषि को सबसे क्रोधी ऋषि माना जाता है। वह परमज्ञानी और बलशाली होने के कारण महर्षि कहलाए।

 

 

 

शिव ने दिया अमरत्व
भागवतपुराण में किए गए मार्कंडेय ऋषि के वर्णन में उन्हें अजर अमर बताया गया है। भगवान शिव के वरदान से मर्कंड ऋषि के घर जन्मे बालक का नाम मार्कंडेय रखा गया जो बाद में महान ऋषि बना। शिव के वरदान के अनुसार मार्कंडेय का जीवनकाल सिर्फ 16 वर्ष का था। अल्पायु मृत्यु जानकर मार्कंडेय ने अंतिम समय में हर पल भगवान शिव की तपस्या में लगा दी। इससे शिव प्रसन्न हो गए और मार्कंडेय को अमरत्व का वरदान दे दिया। इसीलिए माना जाता है कि मार्कंडेय ऋषि आज भी जीवित हैं।

 

 

 

 

वेदव्यास बोलते गए गणेश लिखते गए
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की है। मान्यता है कि वेदव्यास ने महाभारत की कहानी भगवान गणेश से लिखवाई थी। धर्मग्रंथों के अनुसार महर्षि पाराशर और सत्यवती के पुत्र वेदव्यास महाज्ञानी हैं। उन्होंने वेदों को अलग अलग भागों में विभाजित किया। अपनी अलौकिक शक्तियों और जीवनदायिनी विद्याओं के कारण वह अजर अमर हैं। यही वजह है कि वह कलयुग में जीवित हैं।

 

 

 

कौरवों की ओर से लड़े कृपाचार्य आज भी जिंदा
महाकाव्य महाभारत में दो लोगों के आज भी जीवित रहने की बात का उल्लेख किया गया है। एक तो अश्वत्थामा है और दूसरे पांडवों और कौरवों के गुरु कृपाचार्य हैं। महान ज्ञानी और समस्त विद्या जानने वाले कृपाचार्य उन 18 महायोद्धाओं में से थे जो महाभारत के युद्ध में जिंदा बचे थे। कृपाचार्य ने महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से हिस्सा भी लिया था। लोगों का मानना है कि कृपाचार्य आज भी जीवित हैं। इसका उल्लेख कई हिंदू ग्रंथों में भी मिलता है।…Next

 

 

 

 

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