महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ में अनेक ऐसी कहानियां मिलती है जिन्हें पढ़कर हमें बड़ी विचित्रता का अनुभव होता है. इन कहानियों में अधिकतर योद्दाओं के जन्म या मृत्यृ से कई तरह की दिलचस्प कहानियां जुड़ी हुई है. ऐसी ही एक विचित्र कथा जुड़ी है कंस के ससुर जरासंध से. इसके बारे में कहा जाता है कि जरासंध मथुरा के राजा कंस का ससुर और परम मित्र था.
मिली सोने से भरी जरासंध की गुफा
श्रीकृष्ण से कंस वध का प्रतिशोध लेने के लिए उसने 17 बार मथुरा पर चढ़ाई की, लेकिन हर बार उसे असफल होना पड़ा. जरासंध के भय से अनेक राजा अपने राज्य छोड़ कर भाग गए थे. शिशुपाल जरासंध का सेनापति था. जरासंध के जन्म के बारे में कहा जाता है कि उसका जन्म दो मां से आधा-आधा हुआ था. मगधदेश में बृहद्रथ नाम के राजा थे. उनकी दो पत्नियां थीं, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी. एक दिन संतान की चाह में राजा बृहद्रथ महात्मा चण्डकौशिक के पास गए और सेवा कर उन्हें संतुष्ट किया. प्रसन्न होकर महात्मा चण्डकौशिक ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि ये फल अपनी पत्नी को खिला देना, इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी.
आज भी मृत्यु के लिए भटक रहा है महाभारत का एक योद्धा
राजा बृहद्रथ की दो पत्नियां थीं. राजा ने वह फल काटकर अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया. समय आने पर दोनों रानियों के गर्भ से शिशु के शरीर का एक-एक टुकड़ा पैदा हुआ. रानियों ने घबराकर शिशु के दोनों जीवित टुकड़ों को बाहर फेंक दिया. उसी समय वहां से एक राक्षसी गुजरी. उसका नाम जरा था. जब उसने जीवित शिशु के दो टुकड़ों को देखा तो अपनी माया से उन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया और वह शिशु एक हो गया. एक शरीर होते ही वह शिशु जोर-जोर से रोने लगा. बालक की रोने की आवाज सुनकर दोनों रानियां बाहर निकली और उन्होंने उस बालक को गोद में ले लिया. राजा बृहद्रथ भी वहां आ गए और उन्होंने उस राक्षसी से उसका परिचय पूछा. राक्षसी ने राजा को सारी बात सच-सच बता दी. राजा बहुत खुश हुए और उन्होंने उस बालक का नाम जरासंध रख दिया क्योंकि उसे जरा नाम की राक्षसी ने संधित (जोड़ा) किया था. कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जरासंध का वध भीम ने किया था…Next
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