हिंदू पुराणों में भगवान राम की पत्नी माता सीता को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। इसलिए उनकी पूजा के लिए सही विधि का पालन होना अतिआवश्यक होता है। सही मुहूर्त, नियम और शुभ घड़ी में व्रत पालन और आराधना नहीं करना आपके परिवार के लिए भारी पड़ सकता है। इसलिए 16 फरवरी को जानकी जयंती के मौके पर हम बता रहें हैं पूजा और व्रत पालन की सही विधि।
अत्याचार देख द्रवित हुए विष्णु
पृथ्वी पर बढ़ रहे अत्याचारों को खत्म करने और रामराज्य स्थापित करने के लिए भगवान विष्णु ने मानव रूप में अवतरित होने का निर्णय लिया। विष्णु के फैसले पर देवी लक्ष्मी भी उनके साथ चलने की जिद पर अड़ गईं। मान्यता है कि विष्णु भगवान ने राम के रूप में कोसल नरेश दशरथ के घर में जन्में। जबकि, देवी लक्ष्मी माता सीता के रूप में मिथिला नरेश राजा जनक के घर जन्मीं।
बैल और हल खेत में अटका
माता सीता के जन्म को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार मिथिला नरेश राजा जनक के कोई संतान नहीं थी और वह प्रजा से बेहद प्यार करते थे। कई सालों से राज्य में वर्षा नहीं होने से सूखे और अकाल की स्थिति बन पड़ी। पुरोहितों और मुनियों ने राजा जनक को यज्ञ करने और स्वयं खेत जोतने का उपाय बताया। राजा जनक खुद हल पकड़कर खेत जोतने लगे। अचानक उनका हल खेत में एक जगह फंस गया और बैलों के काफी प्रयास के बावजूद हल नहीं निकला।
मिट्टी हटाकर देखा तो हंसती कन्या मिली
हल की जगह पर मिट्टी हटवाई गई तो वहां से एक कन्या निकली। पृथ्वी से कन्या के निकलते ही राज्य में बारिश शुरू हो गई। राजा जनक ने कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री माना। सीता के आते ही मिथिला में खुशियां लौट आईं और लोगों का जीवन सुखपूर्वक बीतने लगा। जिस दिन राजा जनक को खेत में सीता मिलीं उस दिन फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। इस तिथि को ही माता सीता का प्राकट्य दिवस माना जाता है और हर साल इस तिथि को जानकी जयंती मनाई जाती है।
पूजा का मुर्हूत और सही विधि
जानकी जयंती को सीता अष्टमी, सीता जयंती और सीता नवमी के तौर भी जाना है। इस बार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 16 फरवरी को है। सीता अष्टमी का शुभ मुहूर्त 15 फरवरी की शाम 04:29 बजे से शुरू होकर अगले दिन यानी 16 फरवरी को दोपहर 03:13 बजे तक रहेगा। इस दौरान स्त्रियां सायंकाल को वंदना के उपरांत शाकाहार ग्रहण करती हैं।
प्रतिमा स्थापना और कन्या भोज
प्राताकाल शुद्ध जल से स्नान करने के पश्चात सूर्योदय को जल अर्पित करने के साथ माता सीता के व्रत का संकल्प लिया जाता है। लाल कपड़े के ऊपर माता सीता और भगवान राम की प्रतिमा को स्थापित कर रोली, अक्षत, चंदन और सफेद पुष्प अर्पित किए जाते हैं। इस दौरान माता सीता का वंदन गान किया जाता है। सांयकाल कन्याभोज और ब्राह्मण भोज कराने की भी परंपरा है। ऐसा करने से माता सीता साधक महिला को अपना आशीर्वाद प्रदान करती हैं और उसके दुखों को दूर कर देती है।
व्रत और पूजा के बाद मिलेंगे ये फल
जानकी जयंती के दिन माता सीता की वंदना, पूजा और व्रत रखने का विधान बताया गया है। शास्त्रों के मुताबिक इस तिथि के दिन जो भी स्त्री व्रत रखती है और विधिपूर्वक माता सीता की पूजा करती है उसके पति की उम्र लंबी हो जाती है और दांपत्य जीवन मधुर हो जाता है। साथ ही घर से दुख दूर चला जाता है और खुशियों का वास हो जाता है। जो स्त्रियां निसंतान हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। किसान इस दिन सीता की पूजा करते हैं ताकि उनके खेत सदा हरे भरे रहें। दक्षिण भारत, महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में इस दिन हल और बैलों को स्नान कराने से माता सीता का आशीर्वाद मिलने कथााएं सुनाई जाती हैं।…Next
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