हिंदू मान्यताओं के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। इसे जया एकादशी कहा जाता है। इस तिथि को दया, प्रेम और सुख हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। इंद्र के क्रोध और गंधर्व युगल के प्रेम से इस तिथि का गहरा संबंध है। मान्यता है कि इस तिथि को भगवान विष्णु स्वयं पृथ्वी पर आते हैं और सही विधि नियम और मुहूर्त में जो भी भक्त उनके लिए भोजन त्यागकर पूजा करता है उसे वह मनवांछित फल देते हैं।
कब है जया एकादशी
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष जया एकादशी माघ माह के शुक्ल पक्ष में आती है। इस बार जया एकादशी तिथि का प्रारंभ फरवरी माह की 4 तारीख से शुरू होकर 6 फरवरी को पारण के साथ समाप्त होगा। इस दौरान व्रत का संकल्प लेने और पूजा करने का शुभ मुहूर्त 4 फरवरी की शाम 09:49 बजे से शुरु होगा जो अगले दिन यानी 5 फरवरी की शाम 09:30 तक रहेगा। व्रत संकल्प का पारण अगले दिन यानी 6 फरवरी की सुबह सूर्योदय के साथ करना होगा। विद्वानों के अनुसार इस बार जया एकादशी मुख्य रूप से 5 फरवरी को है।
पौराणिक कथा और गंधर्व प्रेम
नृत्य और विहार के लिए अन्य देवताओं के साथ इंद्रदेव नंदन वन पहुंचे तो उनका स्वागत अप्सराओं और गंधर्वों ने किया। अप्सराओं के साथ गंधर्वों ने नृत्य पेश किया। एक दूसरे के प्रेम में डूबे गंधर्व युगल पुष्पवती और माल्यवान भी इंद्रदेव के समक्ष नृत्य पेश कर रहे थे। दोनों के बीच परस्पर प्रेम के चलते वह सही सुर और ताल नहीं मिला पा रहे थे। इससे नाराज होकर इंद्र ने दोनों को पिशाच बनाकर हिमालय भेज दिया। वर्षों तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु ने दोनों को श्राप मुक्त कर वापस गंधर्व बना दिया।
जया एकादशी पर विष्ण पूजा
इंद्रदेव के क्रोध का शिकार हुए प्रेम में डूबे माल्यवान और पुष्पवती को भगवान विष्णु ने जिस तिथि को सभी कष्टों, पापों से मुक्त कर सुख और प्रेम का वरदान दिया वह माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। भगवान विष्णु ने दोनों से कहा कि इस तिथि को जया एकादशी के नाम से जाना जाएगा और जो भी शुभ मुहूर्त के दौरान मेरी आराधना करेगा उसे स्वर्ग लोक में रहने और सुख समृद्धि हासिल होगी। उसके परिवार के सभी दुख, कष्ट और पाप मिट जाएंगे। इसीलिए जया एकादशी पर विष्णु पूजा का विधान है।
पूजा करने के नियम और विधि
शास्त्रों में वर्णित पूजा विधि और नियमों के मुताबिक साधक को एकादशी के दिन ब्रह्म मुहुर्त में उठकर शुद्ध जल से स्नान आदि करना होगा। स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना होगा। मंदिर या घर में लाल कपड़े पर विष्णु की प्रतिमा को स्थापित करना होगा और इसके बाद गंगाजल, तिल, रोली, अक्षत और पुष्प अर्पित करने का विधान है। घट स्थापना के बाद धूप बत्ती जलाएं और घी के दिए भगवान की आरती उतारें। इसी तरह शाम को भी पूजा करने के बाद फलाहार करें। अगले दिन सूर्योदय के समय ब्राह्मणों को भोजन, दान करने के बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें।…Next
Read More:
जया एकादशी पर खत्म हुआ गंधर्व युगल का श्राप, इंद्र क्रोध और विष्णु रक्षा की कथा
इन तारीखों पर विवाह का शुभ मुहूर्त, आज से ही शुरू करिए दांपत्य जीवन की तैयारी
निसंतान राजा सुकेतुमान के पिता बनने की दिलचस्प कहानी, जंगल में मिला संतान पाने का मंत्र
श्रीकृष्ण की मौत के बाद उनकी 16000 रानियों का क्या हुआ, जानिए किसने किया कृष्ण का अंतिम संस्कार
Read Comments