शास्त्रों में माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। यह तिथि भगवान विष्णु की पूजा और व्रत के लिए समर्पित होने के कारण जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। 5 फरवरी से शुरु हो रही इस तिथि में शुभ मुहुर्त के दौरान व्रत रखने और पूजा शुरू करने से देवताओं और महर्षियों का श्राप भी धुल जाता है। जया एकादशी पूजा और व्रत के कई शुभलाभ शास्त्रों में बताए गए हैं।
नंदन वन में इंद्र का नृत्य विहार
पौराणिक कथा के अनुसार इंद्र देव अन्य देवताओं के साथ गंधर्व और अप्सराओं के नृत्य का आनंद लेने के लिए नंदन वन पहुंच गए। नंदन वन में गंधर्वों में प्रमुख पुष्पदंत और उनकी सुंदर कन्या पुष्पवती विहार कर रही थीं। नंदन वन में इस दौरान गंधर्व चित्रसेन अपनी पत्नी मालिनी, दोनों पुत्र पुष्पवान और माल्यवान के साथ विचरण कर रहे थे। इस बीच गंधर्व कन्या पुष्पवती गंधर्व पुत्र माल्यवान पर मोहित हो गई।
गंधर्व युगल का प्रेममिलन
पुष्पवती ने माल्यवान को आकर्षित करने के लिए काम बाण चला दिया और रूप सौंदर्य से माल्यवान को वश में कर लिया। एक दूसरे पर पूरी तरह मोहित हो चुके माल्यवान और पुष्पवती इंद्र के सामने नृत्य पेश करने लगे। प्रेम में होने के कारण बार बार दोनों का ध्यान नृत्य से भटक जाता और हावभाव भी बदल जाते। इंद्र दोनों के प्रेमालाप के कारण सुर और ताल नहीं मिलने से नाराज होकर दुनिया का हर सुख भूलने का श्राप देकर पिशाच योनि में भेज दिया।
इंद्र का श्राप और पिशाच रूप
श्राप पाते ही पुष्पवती और माल्यवान ने खुद को हिमालय की बर्फीली चोटियों पर पिशाच रूप में पाया। दोनों एक दूसरे को पहचान तो पा रहे थे लेकिन वह सुख, प्रेम, स्वाद, गंध जैसी हर चीज भूलकर पूरी तरह पिशाच बन गए थे। कई वर्षों तक दोनों पिशाच योनि में अत्यंत ठंडे हिमालय के बीच तड़पते रहे। कई वर्ष तक पश्चाताप करने के बावजूद उन्हें श्राप से मुक्ति नहीं मिली तो एक दिन पुष्पवती और माल्यवान ने प्राण त्यागने का निश्चय कर पूरा दिन खाना नहीं खाया और रात भर भूखे रहकर हरि का स्मरण करते रहे।
विष्णु वरदार और कष्ट हरण
पुष्पवती और माल्यवान के दुख और उनकी हरि के प्रति लगन को देखकर भगवान विष्णु स्वयं हिमालय पर पहुंच गए और दोनों को वरदान मांगने को कहा। पुष्पवती और माल्यवान ने सभी कष्टों और पापों से मुक्ति पाने के साथ पूर्व रूप में आने और नंदन वन में रहने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु का वरदान मिलते ही दोनों पूर्व रूप में आ गए। भगवान विष्णु ने दोनों से कहा कि जो भी इस तिथि को मेरी आराधना करेगा उसके सभी कष्ट और पाप खत्म हो जाऐंगे। पुष्पवती और माल्यवान को जिस तिथि को इंद्र के श्राप से छुटकारा मिला वह तिथि माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। इस बार यह तिथि 4 फरवरी की शाम से शुरू होकर 6 फरवरी की सुबह तक है। इस दौरान व्रत संकल्प और पूजा से सभी कष्टों और पापों का नाश हो जाएगा।…Next
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