श्रीनगर के एक छोटे से मोहल्ले में एक पुरानी सी ईमारत है जिसे लोग रोजाबल श्राईन के नाम से जानते हैं. गली के किनारे स्थित यह साधारण सी दिखने वाली पारंपरिक बहुस्तरीय छतों वाली कश्मीरी इमारत न सिर्फ मुस्लिमों बल्कि दुनियाभर के ईसाईयों और धार्मिक इतिहासकारों की आस्था और आकर्षण का केंद्र बनते जा रही है.
कई विद्वानों ने अपने शोध के जरिए ये साबित करने की कोशिश की है कि यहां स्थित मकबरा किसी और की नहीं बल्कि ईसा मसीह या जीसस की है. पर सवाल यह उठता है कि अगर जीसस की मौत सूली पर चढ़ाए जाने की वजह से जेरूसलम में हुई तो उनका मकबरा वहां से लगभग 2500 किमी दूर कश्मीर में कैसे हो सकता है? दरअसल कई शोधकर्ताओं का मानना है कि जीसस की मृत्यु सूली पर चढ़ाने की वजह से हुई ही नहीं थी. रोमनों द्वारा सूली पर चढ़ाए जाने के बावजूद वे बच गए थे और फिर वे मध्यपूर्व होते हुए भारत आ गए. इस घटना के कई वर्षों बाद तक जीसस जीवित रहे पर उनकी बाकी का जीवन भारत में ही बीता.
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जर्मन लेखक होलगर्र कर्सटन ने अपनी किताब ‘जीसस लीव्ड इन इंडिया’ में इस विषय पर विस्तार से लिखा है. पहली बार सन 1887 में रुसी विद्वान, निकोलाई नोटोविच ने यह अशंका जाहिर की थी कि संभवत: जीसस भारत आए थे. नोटोविच कई दफे कश्मीर आए थे. जोजी-ला पास के नजदीक स्थित एक बौद्ध मठ में नोटोविच मेहमान थे जहां एक भिक्षु ने उन्हें एक बोधिसत्व संत के बारे में बताया जिसका नाम ईसा था. नोटोविच ने पाया कि ईसा औऱ जीसस क्राईस्ट के जीवन में कमाल की समानता है.
जीसस की जिंदगी से जुड़ा एक विवाद यह भी है कि नया नियम इस बात पर पूरी तरह खामोश है कि जीसस 13 साल की उम्र से लेकर 30 साल की उम्र तक कहां रहे. इस समय को जीसस की जिंदगी के गुमशुदा साल कहे जाते हैं. कुछ विद्वानों का मानना है कि जीसस पूर्व की ओर चलते हुए रेशम मार्ग से होते हुए आज के भारत, तिब्बत और चीन पहुंचे और यहां पहुंचकर उन्होंने हिन्दू और बौद्ध धर्म की शिक्षा प्राप्त की और उनकी मृत्यु भी हिमालय के गोद में बसे भारत के कश्मीर प्रांत में हुई जहां उनकी कब्र आज भी मौजूद है.
गोवा से छपने वाले एक अंग्रेजी अखबार नवहिंद टाइम्स के अनुसार, अपने लंबे भारत प्रवास के दौरान जीसस ने पूरी, बनारस और तिब्बत की बुद्ध मठों की यात्रा की जहां उनके प्रेम और अहिंसा के दर्शन और अधिक मजबूत हुए. 30 साल की उम्र में जीसस अपने इस दर्शन के प्रचार-प्रसार के लिए अपने जन्मस्थान पहुंचे पर सूली की घटना के बाद (जिसमें वे बच गए थे) उन्हें वापस भारत आना पड़ा. वे अपनी मां मेरी और अपने कुछ शिष्यों के साथ एक लंबी यात्रा करके भारत पहुंचे जहां वे कश्मीर प्रांत में 80 वर्ष की उम्र तक रहे.
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रोजाबल में जिस व्यक्त्ति का मकबरा है उसका नाम यूजा असफ. शोधकर्ताओं का मानना है कि यूजा असफ कोई और नहीं बल्कि ईसा मसीह या जीसस हैं. आज के ईरान और तब के फारस में यात्रा के दौरान जीसस को यूजा असफ के नाम से ही जाना जाता था. इस बात की पुष्टी कई कश्मीरी एतिहासिक दस्तावेज करते हैं कि कुरान में उल्लेखित इसा को यूजा असफ के नाम से भी जाना जाता था.
हिंदू ग्रंथ भविष्यत महापुरान में भी इस बात का उल्लेख है कि इसा मसीह भारत आए थे और उन्होंने कुषाण राजा शलीवाहन से मुलाकात की थी. मुस्लिमों का अहमदिया समुदाय इस बात पर यकीन करता है कि रोजाबल में मौजूद मकबरा ईसा या जीसस का ही है.
अहमदिया समुदाय के संस्थापक हजरत मिर्जा गुलाम अहमद ने 1899 में लिखी अपनी किताब ‘मसीहा हिन्दुस्तान में’ इस बात को सिद्ध किया है कि रोजाबेल में स्थित मकबरा जीसस का ही है.
हालांकि ईसाई धर्मगुरू इस बात से साफ इंकार करते हैं कि जीसस कभी भारत आए थे पर यह बात अगर सिद्ध हो जाती है तो यह ईसाई धर्म के आधारभूत विश्वास पर बेहद करारा कुठाराघात होगा.
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