हिंदू मान्यताओं के मुताबिक शरद पूर्णिमा से ही कार्तिक मास की शुरुआत मानी जाती है। इस बार कार्तिक मास की शुरुआत 14 अक्टूबर से हो रही है। ऐसा कहा जाता है कि इस माह में वृक्षों की कटाई नहीं करनी चाहिए और नए नए पौधों को रोपना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से देवी तुलसी जो माता लक्ष्मी का स्वरूप हैं वह प्रसन्न हो जाती हैं और धन संपदा से परिपूर्ण कर देती हैं। इसलिए कार्तिम माह में तुलसी के पौधे की पूजा का भी विधान बताया गया है।
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन भगवान विष्णु चिर निद्रा से जाग उठते हैं। कार्तिक माह शुरू होने से करीब 4 चार दिन पहले ही भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए पापांकुश एकादशी का व्रत भी रखा जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि इस एकादशी के व्रत और पूजा से चार दिन बाद भगवान विष्णु चिर निद्रा से जाग उठते हैं। भगवान के जागने के दिन से ही कार्तिक मास की शुरूआत हो जाती है।
शास्त्रों में बताया गया है कि कार्तिक माह में भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह संपन्न होता है। इसलिए इन दोनों लोगों की पूजा का विशेष विधान है। चूंकि माता तुलसी कलयुग में एक पौधे के रूप में मौजूद हैं, इसलिए तुलसी के पौधे की पूजा भी अनिवार्य बताई गई। तुलसी के पौधे की पूजा करने से सभी तरह के दुखों का नाश हो जाता है और घर खुशहाली आती है। मान्यता है कि तुलसी की पूजा से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन संपदा और वैभव हासिल करने का वरदान देते हैं।
तुलसी पूजा के लिए कार्तिक मास में देवउठनी एकादशी के व्रत का विधान बताया गया है। इस एकादशी को तुलसी की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान विष्णु ने जलंधर नामक राक्षस को छल से मार दिया था इस पर उसकी पत्नी वृंदा ने विष्णु को श्राप दे दिया था। नाराज वृंदा को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया था कि वह शालिग्राम का रूप लेकर वृंदा के तुलसी स्वरूप से कार्तिक मास में विवाह करेंगे। इसके बाद से ही इस माह तुलसी के पौधे की पूजा का विशेष महत्व बन गया।…Next
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