शरद पूर्णिमा से शुरु होने वाले कार्तिक मास आज यानी 12 नवंबर को पूर्णिमा के साथ पूरा हो रहा है। इस दिन तुलसी पूजा का विधान बताया गया है। इस माह में वृक्षों की कटाई नहीं करने और नए पौधे रोपने को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से देवी तुलसी जो माता लक्ष्मी का स्वरूप हैं वह प्रसन्न हो जाती हैं और धन संपदा से परिपूर्ण कर देती हैं।
तुलसी पूजा नियम और विधान
कार्तिक पूर्णिमा यानी आज 12 नवंबर की शाम को तुलसी पूजा का मुहूर्त बना है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार शांयकाल में तुलसी के पौधे की पूजा करना आवश्यक बताया गया है। तुलसी के पौधे की पूजा के लिए 31 दीपों का होना भी महत्वपूर्ण है। इन दीपों को प्रज्ज्वलित करने के बाद पौधे चारों ओर रखना होता है। मान्यता है ऐसा करने से घर पर लगे सभी दोष दूर हो जाते हैं और देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इस दिन तुलसी की पूजा करने से घर में खुशहाली के साथ धन धान्य में बढ़ोत्तरी होती है। ऐसी भी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के पौधे को नष्ट करना अशुभ होता है। ऐसा करने से नरक का भागी बनना होता है।
तुलसी विवाह का विधान
शास्त्रों में बताया गया है कि कार्तिक माह में ही भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह संपन्न होता है। इसलिए इन दोनों लोगों की पूजा का विशेष विधान है। चूंकि माता तुलसी कलयुग में एक पौधे के रूप में मौजूद हैं, इसलिए तुलसी के पौधे की पूजा भी अनिवार्य बताई गई। मान्यता है कि तुलसी की पूजा से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन संपदा और वैभव हासिल करने का वरदान देते हैं।
कार्तिक मास में तुलसी का महत्व
तुलसी पूजा के लिए कार्तिक मास में देवउठनी एकादशी के व्रत का विधान बताया गया है। इस एकादशी को तुलसी की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान विष्णु ने जलंधर नामक राक्षस को छल से मार दिया था इस पर उसकी पत्नी वृंदा ने विष्णु को श्रॉफ दे दिया था। नाराज वृंदा को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया था कि वह शालिग्राम का रूप लेकर वृंदा के तुलसी स्वरूप से कार्तिक मास में विवाह करेंगे। इसके बाद से ही इस माह तुलसी के पौधे की पूजा का विशेष महत्व बन गया।…Next
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