हिंदू धार्मिक मान्यताओं में करवा चौथ का खासा महत्व है। यह दिन महिलाओं के पर्व के तौर पर भी जाना जाता है। वह पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए पति की लंबी आयु और अपने दांपत्य जीवन में खुशहाली की कामना करती हैं। इस व्रत को सरग्री ग्रहण शुरू में ही शुरू करने की परंपरा है। मान्यता है कि इस सूर्यास्त के समय सरगी ग्रहण होता है और इस समय व्रत की शुरुआत करने से फल शुभकारी होता है। पहली बार करवा चौथ का व्रत किस सुहागिन ने रखा था इसको लेकर अलग अलग मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं।
प्रचलित लोककथाओं में वीरावती
हिंदू मान्यताओं और प्रचलित कथाओं के अनुसार एक नगर के मशहूर व्यापारी की बेटी ने अपने पति की लंबी आयु की कामना की और करवा चौथ का व्रत रख लिया। पहले कभी व्रत नहीं रखने के कारण वह भूख प्यास से व्याकुल हो गई और उसकी हालत बिगड़ने लगी। अपनी बहन को मौत के मुंह में जाता देख उसके भाइयों ने उसे धोखे से चांद निकलने का आभास करवाकर व्रत पूरा करा दिया। भोजन करने के बाद उस युवती की जान बच गई। लेकिन असल में व्रत बीच में ही तोड़ दिए जाने से ससुराल में उसके पति की मौत हो गई।
मां जगदंबा का आशीर्वाद
पति की मौत से युवती मां जगदंबा को पुकार कर विलाप करने लगी। युवती के करुण क्रंदन सुनकर मां जगदंबा अवतरित हुईं और युवती को सच्चाई बताई कि उसके भाइयों ने उसकी जान बचाने के लिए छल कपट किया है। इस कारण उसके पति की मौत हुई है। युवती ने सच्ची निष्ठा के साथ दोबारा व्रत करने का संकल्प लिया और व्रत पालन करने लगी। युवती की निष्ठा को देखकर मां जगदंबा ने उसके पति का जीवन लौटा दिया। उस युवती को वीरावती के नाम से जाना गया। वीरावती के व्रत रखने की कथा को कई जानकर पहली व्रत पालन करने वाली सुहागिन मानते हैं।
माता पार्वती से जुड़ा है करवा चौथ व्रत
हिंदू मान्यताओं के अनुसार शास्त्रों में बताया गया है कि करवा चौथ पर्व और व्रत कथा भगवान शिव के परिवार को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने प्रत्येक जन्म में भगवान भोलेनाथ को ही अपना पति स्वीकार करने का संकल्प लिया था। हर बार नए जन्म के बाद माता पार्वती पूजा आराधना के बाद भगवान भोलेनाथ को पति स्वरूप में हासिल करने में कामयाब रहती हैं। एक बार उन्हें भगवान भोलेनाथ को पाने के लिए कई वर्षों तक तप करना पड़ा। तप के कारण उनका गौर वर्ण श्याम हो गया। बिना अन्न जल ग्रहण किए माता पार्वती ने तप किया तो भगवान भोलेनाथ खुश हो गए और उन्होंने वरदान देकर माता पार्वती को फिर से गौर वर्ण का कर दिया। माता पार्वती के इस स्वरूप को माता गौरी के नाम से जाना गया।
माता पार्वती तप से लौटीं
ऐसी मान्यता है कि इसके बाद भगवान भोलेनाथ पार्वती समेत अपने पूरे परिवार के साथ कैलाश पहुंचे। यहां पर माता पार्वती के लौटने पर पुत्र गणेश और कार्तिकेय समेत तमाम गणों ने हर्ष उल्लास मनाया। ऐसा माना जाता है कि करवा चौथ पर्व के जरिए भी सुहागिन महिलाएं अपने पति की खुशहाली और दांपत्य जीवन में सुख आने की कामना के साथ व्रत पालन करती हैं। कुछ लोगों की मान्यता है कि माता पार्वती ने ही पहला करवा चौथ व्रत रखना था। करवा चौथ के दिन माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय की पूजा का विधान भी बताया गया हैं।
देव पत्नियों ने रखा पहला करवा चौथ व्रत
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया। असुर देवताओं पर भारी पड़ने लगे और उन्हें भयंकर नुकसान पहुंचाने लगे। स्वयं इंद्र देव भी असुरों को हरा नहीं पा रहे थे। ऐसे में देवताओं की सेना लगातार कम होती जा रही थी। देवताओं की हार होती देख उनकी पत्नियां घबरा गईं और ब्रह्मदेव के पास पहुंचकर असुरों को हराने और उनके पतियों के जीवन की रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने देवताओं को असुरों पर विजय प्राप्ति का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि देवताओं की पत्नियों को अपने पतियों की मंगलकामना और असुरों पर विजय के लिए व्रत रखना चाहिए। इससे निश्चित ही देवताओं को विजय प्राप्त होगी। इसके बाद से ही करवा चौथ व्रत की परंपरा का शुरू होना माना जाता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि पहला करवा चौथ व्रत देवताओं की पत्नियों ने रखा था।
करवा स्त्री ने अपने पति के प्राण बचाए, द्रौपदी ने भी व्रत रखा
प्रचलित कथाओं के अनुसार करवा नाम की महिला के पति को सरोवर में मगर ने पकड़ लिया था। पति के प्राण बचाने के लिए करवा नाम की महिला ने भगवान से प्रार्थना करते हुए व्रत रखा था। इससे भगवान प्रसन्न होकर उसके पति को जीवनदान दे दिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में द्रौपदी ने भी पांडवों की रक्षा के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। अलग अलग प्रचलित कथाओं में अलग अलग समय में अलग अलग स्त्रियों ने करवा चौथ का व्रत रखा था। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि पहली बार किस स्त्री ने करवा चौथ का व्रत रखा था।…Next
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