गुजरात के भावनगर के सारंगपुर में विराजने वाले कष्टभंजन हनुमान यहां महाराजाधिराज के नाम से जाने जाते हैं. उनका यह नाम इसलिये पड़ा क्योंकि वो अपने भक्तों के हर कष्ट को हर लेते हैं. इसके अलावा उनके इस नाम के पीछे देवताओं को समय-समय पर कष्टों से निकालने की प्रचीन मान्यता भी रही है.
कष्टभंजन का मंदिर एक भव्य किले के मध्य है. हनुमान का यह धाम गुजरात में अहमदाबाद से भावनगर की ओर जाते हुए करीब 175 किलोमीटर की दूरी पर है. राजाओं के दरबार की भाँति सजी इस विशाल मंदिर के मध्य करीब 45 किलो स्वर्ण और 95 किलो चाँदी से बने आकर्षक सिंहासन पर कष्टभंजन हनुमान विराजते हैं.
कष्टभंजन हनुमान की मूर्ति का मुकुट हीरों और जवाहरात निर्मित है जबकि मूर्ति के समीप ही स्वर्ण निर्मित गदा रखी है. इसके चहुँओर प्रिय वानरों की सेना दिखती है. अत्यंत प्राचीन इस मूर्ति के प्रति यह मान्यता है कि पवनपुत्र का स्वर्ण आभूषणों से लदा हुआ ऐसा भव्य और दुर्लभ रूप कहीं और देखने को नहीं मिलता है.
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यहाँ आरती से पहले मूर्ति का रात्रि श्रृंगार उतारा जाता है जिसके बाद नव वस्त्रों से सुसज्जित कर स्वर्ण आभूषणों से श्रृगांर किया जाता है. शनिवार को यहाँ आने वाले भक्तों के मन में यह भाव होता है कि शनि देव के प्रकोपों से सभी डरते हैं लेकिन स्वयं शनिदेव हनुमान से डरते हैं. इसलिये हनुमान की पूजा करने से उन पर शनि का प्रकोप नहीं होगा.
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हनुमान के इस धाम की अन्य विशेषता है उनकी मूर्ति के चरणों के समीप स्त्री रूप में शनि की मूर्ति का होना. स्वर्ण जड़ित मूर्ति अवस्थित इस स्थान की मान्यता है कि बजरंग बली के इसी रूप ने यहाँ के लोगों को शनि के प्रकोप से मुक्त किया. यहाँ पूजा करने से शनि के समस्त प्रकोप शीघ्र ही दूर हो जाते हैं.Next….
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