कौरव और पांडवों के बीच हक और सत्य के लिए लड़े गए महाभारत युद्ध से पूरा ब्रह्मांड हिल गया था। कहा जाता है कि यह संसार का पहला विश्वयुद्ध भी था। क्योंकि इसमें पूरे आर्यावर्त के राजाओं ने हिस्सा लिया था। युद्ध के दौरान मैदान पर मौजूद दोनों सेनाओं के करीब 50 लाख सैनिकों के खाने का इंतजाम बड़ी चुनौती थी। इस समस्या को दक्षिण के एक राजा ने हल कर दिया था।
ब्रह्मांड का पहला विश्वयुद्ध
भारत के दक्षिण में प्रचलित कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध की शुरुआत से पहले आर्यावर्त के समस्त राजा इसमें भाग लेने के लिए हस्तिनापुर पहुंच रहे थे। कौरव और पांडव इन राजाओं को अपना प्रयोजन और लक्ष्य बताकर उन्हें अपनी ओर करने का प्रयास करने में जुटे थे। तब दक्षिण के उडुपी नरेश अपनी विशाल सेना के साथ धर्म और सत्य की स्थापना के लिए लड़े जा रहे इस युद्ध में भाग लेने के लिए हस्तिनापुर पहुंचे।
उडुपी नरेश ने श्रीकृष्ण को दिया प्रस्ताव
कौरव और पांडव के प्रतिनिधि प्रतापी उडुपी नरेश को अपनी अपनी ओर से युद्ध लड़ने के लिए मनाने लगे। दोनों पक्षों की बातें सुनकर उडुपी नरेश तय नहीं कर पाए कि वह किसकी ओर से युद्ध लड़ें और उन्हें वहां मौजूद आर्यावर्त की समस्त सेना के भोजन की चिंता सताने लगी। उडुपी नरेश पांडवों के शिविर में पहुंचे और श्रीकृष्ण से मिले। उडुपी नरेश ने श्रीकृष्ण से कहा कि भाईयों के बीच हो रहे इस युद्ध के वह समर्थक नहीं हैं। लेकिन अब इसे टाला नहीं जा सकता है, लिहाजा वह इसमें वह शस्त्रों के जरिए भाग नहीं लेना चाहते हैं। लेकिन, वह इस महायुद्ध में शामिल जरूर होना चाहते हैं।
50 लाख से ज्यादा सैनिकों के लिए भोजन
श्रीकृष्ण उडुपी नरेश का प्रयोजन समझ गए और उनसे पूछा कि आप क्या चाहते हैं। इस पर उडुपी नरेश ने दोनों ओर के सैनिकों के भोजन का प्रबंध करने का प्रस्ताव रखा। इस पर श्रीकृष्ण मान गए और उडुपी नरेश ने अपनी सेना के साथ बिना शस्त्रों के युद्ध में भाग लिया। उडुपी नरेश ने दोनों ओर के सैनिकों के लिए 18 दिन तक रोजाना भोजन उपलब्ध कराया। युधिष्ठिर ने राजतिलक समारोह के दौरान उडुपी नरेश की प्रशंसा करते हुए उन्हें बिना शस्त्र के युद्ध लड़ने वाले राजा के नाम से सुशोभित किया।…Next
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