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जानिए: मोहर्रम में क्‍यों निकलते हैं ताजिया, कौन था यजीद और किसने किया था इमाम हुसैन का कत्‍ल

इस्‍लाम धर्म को मानने वालों के लिए मोहर्रम शहादत का महीना माना जाता है। मोहर्रम की 10वीं तारीख को पूरी दुनिया के मुस्लिम इमाम हुसैन की याद में ताजिया और जुलूस निकालते हैं। धार्मिक मान्‍यता के तहत इस महीने में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।

Rizwan Noor Khan
Rizwan Noor Khan9 Sep, 2019

 

इस्‍लामिक नववर्ष का पहला माह शोक का
मोहर्रम की शुरुआत से ही इस्‍लामिक कैलेंडर की शुरुआत मानी जाती है। मोहर्रम माह की 10वीं तारीख को पैगंबर मोहम्‍मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को कत्‍ल किए जाने से इस माह को शोक के तौर पर जाना जाता है। इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्यों से बचा जाता है। इस्‍लामिक कैलेंडर में कुल 12 महीने होते हैं। दूसरे महीने को सफर और अंतिम महीने को जुअल हज्‍जा के नाम से जाना जाता है। रमजान का महीना इस्‍लामिक कैलेंडर का सबसे पाक और महत्‍वपूर्ण महीना माना जाता है।

 

क्रूर यजीद ने विरोधियों को गुलाम बनाया
मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक इस्‍लाम धर्म के पैगंबर मोहम्‍मद साहब के इस दुनिया से परदा करने के बाद उनके अनुयायियों ने सबकुछ संभाल लिया। इस बीच मदीना शहर के पास स्थित ‘शाम’ जगह जो कि मुआविया शासक के अधीन थी। मुआविया अरब देशों का राजा था। अचानक उसकी मौत के बाद यजीद ने सत्‍ता हथिया ली और खुद को खुदा मानने के लिए लोगों पर दबाव बनाने लगा। वह चाहता था कि इमाम हुसैन भी उसकी सत्‍ता को स्‍वीकार कर लें तो वह पूरी दुनिया का राजा बन जाएगा। यजीद बेहद क्रूर और जालिम था, उसमें जुआ, शराब समेत सभी तरह के ऐब भरे हुए थे। कुछ लोगों ने उसके डर से उसका कहा मान लिया। इमाम हुसैन और उनके लोगों ने उस धूर्त यजीद की सत्‍ता स्‍वीकार नही की और मदीना शहर में कत्‍लेआम न हो इसलिए शहर छोड़कर इराक की ओर चल पड़े।

 

करबला का भयंकर युद्ध
मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ मदीना शहर छोड़ दिया और इराक की ओर चल पड़े। इस दौरान उनके साथ छोटे बच्‍चे और महिलाएं भी थीं। जब इमाम हुसैन का लश्‍कर करबला पहुंचा तो यहां पर यजीद की सेना ने उन्‍हें घेर लिया और रसद, पानी का रास्‍ता रोक दिया। यजीद की सेना के साथ 10 दिनों तक इमाम हुसैन के लश्‍कर ने युद्ध लड़ा। हर दिन इमाम के लश्‍कर का एक योद्धा मैदान में पहुंचता और यजीद की सेना के पैर उखाड़ देता। भूखे प्‍यासे इमाम हुसैन के 72 साथियों को धीरे-धीरे यजीद के सैनिकों ने धोखा देकर कत्‍ल कर दिया। मोहर्रम की 10 तारीख को इमाम हुसैन को भी यजीद ने कत्‍ल कर दिया। युद्ध के दौरान मात्र 6 महीने के असगर अली को भी शहीद कर दिया गया। इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में दुनियाभर में शोक मनाया जाता है और मोहर्रम की 10 तारीख को ताजिया और जुलूस निकाले जाते हैं।…Next

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