भगवान शिव और विष्णु से जुड़ी कई कहानियां पढ़ने को मिलती हैं उन्हीं में से एक है सुदर्शन चक्र की कहानी। संसार में सबसे शक्तिशाली इस चक्र को भगवान शिव ने ही विष्णु जी को दिया था। खास बात यह कि जिस दिन यह चक्र भगवान विष्णु को मिला उस दिन को बैकुंठ चतुर्दशी के पर्व के तौर पर मनाया जाता है। क्या है इस चक्र की पूरी कहानी जानें।
पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु शिवजी का पूजन करने के लिए काशी गए। वहां के मणिकार्णिका घाट पर स्नान कर विष्णु जी ने एक हजार स्वर्ण कमल फूलों से भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया। इस बीच शिवजी ने भी भगवान विष्णु की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल कम कर दिया। विष्णु जी ने भी एक फूल की कमी देख अपनी आंख को शिव जी को चढ़ाने का संकल्प लिया। क्योंकि भगवान विष्णु जी की आंखों को कमल के समान सुंदर माना जाता है इसीलिए उन्हें कमलनयन और पुण्डरीकाक्ष भी कहा जाता है।
भगवान शिव ने दिया था आर्शीवाद
विष्णु जी जैसे ही अपनी आंख भगवान को चढ़ाने के लिए तैयार हुए, वैसे ही वहां स्वंय शिवजी प्रकट हुए और बोले कि इस पूरे संसार में तुम्हारे समान मेरा कोई दूसरा भक्त नहीं है। उस दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी थी लेकिन खुद भगवान शिव ने कहा कि अब से इस दिन को पूरा संसार बैंकुठ चतुर्दशी के रुप में मनाएगा।
साथ ही कहा कि जो इस व्रत के दिन पहले आपका और बाद में मेरा पूजन करेगा उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। भगवान शिव ने विष्णु जी से प्रसन्न होकर सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया और कहा कि तीनों लोकों में इसकी बराबरी करने वाला कोई अस्त्र नहीं होगा। यह अकेला चक्र राक्षसों का विनाश करने में सक्षम होगा।…Next
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