सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है। सावन महादेव को काफी प्यारा है, इसीलिए इस महीने के आरंभ से ही लाखों की संख्या में लोग कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं। फिर शुद्ध जल से अपने ईष्ट देव का जलाभिषेक कर यात्रा पूरी करते हैं।
क्या है कांवड़ यात्रा
पूरे देश से लोग इस यात्रा पर निकलते हैं, भोलेनाथ के भक्त कांवड़ में गंगाजल लेकर यात्रा करते हैं। वे भगवान शिव के किसी देवस्थान पहुंचकर इस जल को उन पर अर्पित करते हैं। पर इस दौरान वे कांवड़ को जमीन पर नहीं रखते। जो लोग यात्रा करते हैं उनके कांवड़िया कहा जाता है। ज्यादातर कांवड़िए केसरी रंग के वस्त्र धारण करते हैं। ये लोग मुख्य रूप से गौमुख, इलाहाबाद, हरिद्वार या गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों से गंगाजल भरते हैं।
भगवान परशुराम ने की थी कांवड़ की शुरूआत
ऐसा मानना है कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने कांवड़ लाकर ‘पुरा महादेव’, गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल लाकर पुरातन शिवलिंग पर जलाभिषेक किया था। यह जगह वर्तमान में बागपत के पास स्थित है। माना जाता है कि आज भी उसी परंपरा का पालन करते हुए लोग सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर, जिसका वर्तमान नाम ब्रजघाट है, से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
क्या हैं नियम
1. इस यात्रा के नियम काफी सख्त होते हैं, ऐसा कहा जाता है कि अगर कांवड़िए ने नियमों का पालन नहीं किया तो भगवान रुष्ट हो जाते हैं और उसे यात्रा का पूरा फल नहीं मिलता। जानें इन नियमों के बारे में।
2. यात्रा में पहला नियम होता है नशे की मनाही, शराब आदि का सेवन नहीं कर सक। नशीले पदार्थों के अलावा मांस का सेवन भी वर्जित माना गया है।
3. कांवड़ को जमीन पर रखने की मनाही होती है, अगर कहीं रुकना है तो पेड़ आदि ऊंचे स्थानों पर इसे रख सकते हैं।
4. यात्रा को पैदल करने का विधान है, अगर कोई मन्नत मांगी है और उसे पूरी होने पर यात्रा कर रहे हैं तो मन्नत के अनुसार यात्रा होनी चाहिए।…Next
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