प्राचीन समय से ही रंगोली बनाना काफी प्रचलन में पाया गया है। आज भी भारत के कुछ ग्रामीण इलाकों में घर की दीवारों को रंगोली की आकृतियों से सजाया जाता है। लेकिन आधुनिक भारत में खासतौर पर रंगोली का इस्तेमाल त्यौहारों तक ही सीमित रह गया है। ज्यादातर रंगोली को दिवाली के उत्सव पर बनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हम हर दिवाली पर अपने घरों में रंगोली क्यों बनाते हैं।
पहले चावल और रेत से बनती थी रंगोली
सूखा आटा, रंगीन चावल, रंगीन रेत, फूलों की पंखुड़ी, गीला पाउडर चावल जिसमें सरमिसरी (सिंदूर) या हल्दी हो सालों पहले लोग इस तरह से रंगोली बनाते थे। इसके साथ ही लोग दिये का भी इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब लोग रंगीन कलर का इस्तेमाल करके बनाते हैं।
रंगोली से आती है सुख और शांती
वैसे अगर मान्यताओं की मानें तो रंगोली बनाने से घर में सुख, शांती और समुद्धी का वास हगा। इसके साथ ही घर में सौभाग्य का आगमन होगा। घर से सारी बुरी एनर्जी चली जाएगी और दोष दूर होंगे, जीवन नए रंग और खुशीयों से भर जाएगा।
राम जी के आगमन पर बनी थी रंगोली
लोक मान्यताओं के आधार पर ऐसा माना जाता है कि, लंकेश रावण का वध करने के पश्चात जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता के साथ 14 वर्षों का वनवास व्यतीत करके अयोध्या वापस लौट रहे थे, तब अयोध्या वासियों ने उनका पूरे हर्षोल्लास से स्वागत किया था। इसके लिए अयोध्या वासियों द्वारा घर की साफ-सफाई करके घर के आंगन में या फिर प्रवेशद्वार के समीप रंगोली बनाई गई थी तथा पूरे अयोध्या को दीपक से सजाया गया था। तभी से प्रत्येक वर्ष दीपावली पर रंगोली बनाने का रिवाज़ प्रचलित हो गया
भारतीय ऐतिहासिक के लिए हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी है रंगोली
भारतीय ऐतिहासिक नजरिये से देखें तो ऐसा माना जाता है कि भारत में रंगोली का आगमन मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता से जुड़ा है। इन दोनों सभ्यताओं में अल्पना के चिह्न मिलते हैं। कहते हैं कि, अल्पना वात्स्यायन के काम-सूत्र में वर्णित चौसठ कलाओं में से एक है। रंगोली का मोहन जोदड़ो से जुड़े होने का एक कारण बंगाल की आधुनिक लोक कला से है।…Next
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