16वीं सदी में बना लेपाक्षी मंदिर हवा में झूलते पिलर की वजह से दुनिया भर में मशहूर है. इस मंदिर में बहुत सारे स्तंभ है, लेकिन उनमें से एक स्तंभ ऐसा भी है जो हवा में लटका हुआ है. यह स्तंभ जमीन को नहीं छूता और बिना किसी सहारे के खड़ा है. लोग इस बात की पुष्टि करने के लिए इस स्तंभ के नीचे से कपड़ा व अन्य चीजें निकालते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है है कि ऐसा करना शुभ माना गया है.
लेपाक्षी का नामकरण- कहा जाता है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता यहां आए थे. जब रावण माता सीता का अपहरण करके अपने साथ लंका ले जा रहा था, तभी गिद्धराज जटायु ने रावण के साथ युद्ध किया. युद्ध के दौरान घायल होकर जटायु इसी स्थान पर गिर गए थे और जब माता सीता की तलाश में श्रीराम यहां पहुंचे तो उन्होंने ‘ले पाक्षी’ कहते हुए जटायु को अपने गले से लगा लिया. संभवतः इसी कारण तब से इस स्थान का नाम लेपाक्षी पड़ा. मुख्यरूप से “ले पाक्षी” एक तेलुगू शब्द है जिसका अर्थ ‘उठो पक्षी’ है.
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अंग्रेजों के लिए थी सबसे बड़ी मिस्ट्री- इस मंदिर के रहस्यों को जानने के लिए अंग्रेज इसे किसी और स्थान पर ले जाना चाहते थे. इस मंदिर के रहस्यों को देखते हुए एक इंजीनियर ने मंदिर को तोड़ने का प्रयास भी किया था.
इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण सन् 1583 में विजयनगर के राजा के लिए काम करने वाले दो भाईयों (विरुपन्ना और वीरन्ना) ने बनवाया था. कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इसे ऋषि अगस्त ने बनवाया था.
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लेपाक्षी मंदिर की खास बातें- यह मंदिर भगवान शिव, विष्णु और वीरभद्र का है. यहां तीनों भगवानों के अलग-अलग मंदिर मौजूद है. मंदिर के परिसर में नागलिंग की एक बड़ी प्रतिमा है. माना जाता है कि यह भारत की सबसे बड़ी नागलिंग प्रतिमा है.Next…
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