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स्वयं गणेश का जीवन ही है शिक्षा की एक खुली किताब, पढ़िए गणपति से जुड़ी ऐसी कथाएं जो हमें जीवन का सही मार्ग दिखाती हैं

अपने जीवन में हमें ऐसा कोई ना कोई व्यक्ति जरूर मिल जाता है जिसे हम अपना गुरु मानतें हैं, उसके आदेशों का पालन करते हैं व उसे अपनी जिंदगी के उतार-चढ़ाव में मार्गदर्शक बनाते हैं. अब आप ही सोचिये, यदि एक व्यक्ति हमें इतनी सीख दे सकता है, उसकी जिंदगी भी हमें इतना प्रभावित कर सकती है तो सोचिये भगवान की जिंदगी हमें क्या कुछ नहीं सिखाएगी… मां पार्वती व भगवान शिव के पुत्र गणेश को सभी विघ्नहर्ता के नाम से जानते हैं, तो आईये जानते हैं कि गणपति के जीवन के कुछ अंश हमें क्या सीख देते हैं.


ganpati


जब हुए थे माता की सेवा में उपस्थित


गणेश जी के जीवनकाल से जुड़ी यदि सबसे पहली कोई कथा का मनुष्य स्मरण करता है, तो वो माता पार्वती द्वारा गणेश की रचना. यह तब की बात है जब माता पार्वती को स्नान के लिए जाना था लेकिन उनके द्वार पर पहरा देने के लिए कोई नहीं था, तभी मां ने अपने तन की मैल से एक बच्चे की रचना की, वो थे गणेश.


मां पार्वती ने गणेश को द्वारपाल बनाकर किसी को भी अंदर ना आने का आदेश दिया. कुछ ही क्षणों में वहां भगवान शिव उपस्थित हुए, जिन्हें गणेश ने अंदर जाने के अनुमति नहीं दी. अनेक यत्नों के बाद भी जब गणेश ने भगवान शिव को अंदर ना जाने दिया तो इस बात से अंजान कि गणेश उन्हीं का पुत्र है, शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने शस्त्र से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया.


अपने पुत्र गणेश को इस तरह धरती पर कटे हुए धड़ के साथ जब माता ने देखा तो वे बेहद क्रोधित हो गईं और शिव से कहा कि वे गणेश को पहले जैसा जीवित कर दें. तभी शिव ने हाथी का सिर गणेश के शरीर से जोड़ दिया.


सीख: इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि चाहे कुछ भी हो जाए हमें अपना काम बिना किसी स्वार्थ व ध्यान को ना भटकाते हुए करना चाहिए. चाहे कोई भी आवस्था हो हमें अपने से बड़ों द्वारा मिले आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए.


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आपके पास जो है उसे ही उपयोगी बनाएं


यह तब की बात है जब मां पार्वती और भगवान शंकर ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिक व गणेश की परीक्षा लेने का निर्णय लिया. दोनों ने अपने पुत्रों को दुनिया का तीन बार चक्कर लगाने को कहा और विजेता को इनाम के रूप में सबसे स्वादिष्ट फल देने का वादा किया. यह सुनकर कार्तिक अपने मोर पर बैठकर दुनिया का भ्रमण करने निकल गए लेकिन दूसरी ओर भगवान गणेश ने अपने माता पिता के ही चारों ओर चक्कर लगाना शुरु कर दिया. जब उनसे इस बात का कारण पूछा गया तो वे बोले कि उनका संसार स्वयं उनके माता पिता हैं, तो वे समस्त संसार का भ्रमण क्यों करें?


Ganesh and Kartik


सीख: इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे पास जो भी उपस्थित चीजें हैं हमें उनमें से सबसे मूल्यवान को चुनकर उसे उपयोगी बनाना चाहिए ना कि बिना कुछ सोचे समझे जो चीज हमारे पास ना हो उसके लिए विलाप करना चाहिए. इसके अलावा यह कथा हमें अपने माता पिता को सबसे उच्च मानने की सीख भी देती है.


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अच्छे कर्मों के लिए खुद का बलिदान भी करें


भगवान गणेश ने महान ऋषि वेद व्यास के कहने पर महाभारत का महान ग्रंथ स्वयं अपने हाथों से लिखा था. इस ग्रंथ को लिखने के लिए व्यास और गणेश के बीच एक समझौता हुआ था कि व्यास इसे बिना रुके सुनाएंगे व गणेश भी बिना रुके लिखेंगे. लिखते समय अचानक भगवान गणेश की कलम टूट गई लेकिन लिखावट में कोई बाधा ना आए इसके लिए भगवान गणेश ने अपना दंत तोड़कर कलम के रूप में इस्तेमाल किया.


vyas and ganesha


सीख: अपने इस महान कार्य से भगवान गणेश हमें यह सीख देतें हैं कि जब भी किसी के भले के लिए हम कोई काम कर रहे हैं तो निस्वार्थ होकर हमें खुद का या अपनी किसी वस्तु का बलिदन करने से पीछे नहीं हटना चाहिए.


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क्रोध को शांत करना सीखें


एक बार महान योद्धा परशुराम कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने आए लेकिन वहां गणेश द्वारा उनको भगवान शिव से मिलने से रोक दिया गया. जल्द क्रोधित हो जाने वाले परशुराम ने गणेश जी को युद्ध का आमंत्रण दिया. इस युद्ध में परशुराम ने गणेश जी के बाएं दांत पर प्रहार कर उसे तोड़ दिया. फलतः मां पार्वती अत्यंत क्रुद्ध हो गईं. उन्होंने कहा कि परशुराम क्षत्रियों के रक्त से संतुष्ट नहीं हुए इसलिए उनके पुत्र गणेश को हानि पहुंचाना चाहते हैं. बाद में गणेश जी ने स्वयं हस्तक्षेप कर मां पार्वती को प्रसन्न किया. गणेश जी की इस अनुकम्पा को देख परशुराम जी ने उन्हें अपना परशु प्रदान कर दिया.


parshuram and ganesha


सीख: पुराणों में विख्यात इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि हमें खुद के व दूसरों के क्रोध को भी शांत करना आना चाहिए. यदि मनुष्य जीवन के संकटों को हंसी खुशी संभालना सीख जाए तो उसका सफल होना निश्चित है.


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