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सती कथा से जुड़ा है लोहड़ी पर्व का इतिहास, इस पर्व के पीछे हैं कई और रोमांचक कहानियां

पंजाब के मुख्‍य त्‍योहार के तौर पर मनाए जाने वाले लोहड़ी की जड़ें शिव और सती की कथा से जुड़ी हुई हैं। हालांकि, इस पर्व को मनाने के पीछे कुछ और रोमांचक कहानियां हैं। मान्‍यता है कि इस दिन दुष्‍ट और पापियों का नाश कर लोगों को सुरक्षित किया गया था। इस बार 13 जनवरी को लोहड़ी पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। आईए जानते हैं पर्व के इतिहास से जुड़ी कुछ रोचक कहानियों के बारे में।

Rizwan Noor Khan
Rizwan Noor Khan13 Jan, 2020

 

 

 

 

क्‍या है लोहड़ी पर्व
पंजाब में इस पर्व के दिन खूब रौनक रहती है और घरों पकवान बनाए जाते हैं। पर्व पर एक दूसरे को रेवड़ी, मूंगफली, गजक भेंट करने की भी परंपरा है। इस पर्व के दौरान शाम के समय लकड़ी इकट्ठा कर जलाई जाती है और उसमें रेवड़ी, मूंगफली डालकर दुल्‍ला भट्टी के गीत गाए जाते हैं। यह पर्व परिवार के सदस्‍यों को एकजुटता का संदेश भी देने के लिए मनाया जाता है। इस दौरान जांबाज शख्‍स दुल्‍ला भट्टी की कहानी भी सुनाई जाती है।

 

 

 

पौराणिक कथा
हिंदू पुराण और मान्‍यताओं के अनुसार लोहड़ी पर्व भगवान शिव और देवी सती के जीवन से जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि पहली बार इस पर्व को सती के अग्निकुंड में जलने की याद में शुरू किया गया था। कथा के अनुसार पार्वती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और अपने दामाद शिव को आमंत्रित नहीं किया। इससे नाराज होकर देवी सती अपने पिता के घर पहुंच गईं। वहां पति शिव के बारे में कटु वचन और अपमान सुन सती यज्ञ कुंड में समा गईं।

 

 

 

 

 

अग्निकुंड में समाईं सती की कथा
सती के अग्निकुंड में समाधि लेने की सूचना पाकर भयंकर क्रोध में आए भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्‍पन्‍न किया और प्रजापति दक्ष का सिर कटवा दिया। कहा जाता है कि यक्ष को शिव की अनुमति से बाद में पूरा कराया गया। यज्ञ कुंड में दोबारा लकड़ी और अन्‍य सामग्री डाली गई और यहीं से लोहड़ी पर्व की शुरुआत मानी जाती है। कुछ मान्‍यताओं के अनुसार देवी सती की याद में वह दोबारा यज्ञ कुंड जलाया गया, जिससे लोहड़ी पर्व की शुरुआत हुई।

 

 

श्रीकृष्‍ण और राक्षसी वध
द्वापर युग में भगवान कृष्‍ण के रूप में भगवान विष्‍णु धरती पर अवतरित हुए। वह मथुरा के राजा कंस के भांजे के तौर जन्‍मे। कंस को यह शाप मिला था कि उसकी बहन देवकी का पुत्र उसकी मौत का कारण बनेगा। देवकी की कोख से जन्‍म लेने के कारण श्रीकृष्‍ण को मारने के लिए कंस ने राक्षसी लोहिता को भेजा। राक्षसी लोहिता ने मथुरा नगरी में अपना आतंक फैला रखा था। वह अकसर बच्‍चों को मारकर खा जाती थी। मकरसंक्रांति के दिन श्रीकष्‍ण के वध के लिए पहुंची। श्रीकष्‍ण ने लोहिता को खेल खेल में ही मार डाला। लोहिता के उत्‍पात से मुक्ति पाकर मथुरावासियों ने उस दिन आग जलाकर और एक दूसरे को खाद्य सामग्री भेंट कर खुशी मनाई। मान्‍यता है कि इसी वजह से लोहड़ी पर्व की शुरुआत हुई।

 

 

 

 

 

 

दुल्‍ला भट्टी के गीत और कहानी
लोकथाओं और मान्‍यताओं के अनुसार मुगलकाल के दौरान पंजाब का एक व्‍यापारी वहां की लड़कियों को कुछ रुपयों के लालच में बेच दिया करता था। उसके आतंक से इलाके की महिलाएं अपनी बेटियों को घर से बाहर नहीं निकलने देती थीं। लेकिन, वह कुख्‍यात व्‍यापारी घरों में घुसकर लड़कियों को ले जाता और बेच देता था। महिलाओं और लड़कियों को बचाने के लिए दुल्‍ला भट्टी नाम के नौजवान शख्‍स ने उस व्‍यापारी को कैद कर लिया और उसकी हत्‍या कर दी। उस कुख्‍यात व्‍यापारी से बचाने के लिए महिलाओं ने दुल्‍ला भट्टी का शुक्रिया अदा किया और उसके लिए खुशी के गीत गए। माना जाता है कि तभी से इस पर्व की शुरुआत हुई।…Next

 

 

 

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