भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव को ही माना जाता है। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव के प्रतीक के रूप में शिवलिंग की पूजा करने की मान्यता सदियों से रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं शिव के एक ओर प्रतीक नटराजन की मूर्ति का क्या महत्व है।जिसे शिव की उपासना से जोड़कर देखा जाता है। हिन्दू धर्म में 18 मुख्य पुराणों में से स्कंदपुराण और शिवपुराण में नटराजन की मूर्ति से जुड़ी कई कहानियां मिलती है।
स्कंदपुराण में नटराजन की मूर्ति से जुड़ी एक कहानी मिलती है, जिसके अनुसार एक बार सारी मोह-माया त्यागकर वनों में निवास करने वाले साधुओं को अपने तपोबल का अहंकार हो गया। वो लोग साधारण मनुष्यों को तुच्छ जीव मानने लगे। ये सब देखकर कैलाश में विराजमान भगवान शिव को उन साधुओं का अंहकार तोड़ने की एक युक्ति सूझी। भगवान शिव भिखारी का रूप धारण करके वन में टहलने लगे, जब वे साधुओं के निवास स्थान से गुजरे तो इस दौरान साधुओं में जीवों के निर्माण और श्रेष्ठ जीव के विषय को लेकर चर्चा चल रही थी। साधुओं में सबसे श्रेष्ठ होने की मानसिकता उत्पन्न हो गई थी, साथ ही उन्होंने भगवान की पूजा आराधना न करने का फैसला ले लिया। वे मानने लगे थे कि पूरा संसार साधुओं पर ही टिका हुआ है।
उनकी बातों को सुनकर भिखारी वेश धारण किए शिव ने उनकी बातों पर तर्क सहित गलत साबित करना आरंभ कर दिया। शिव को ऐसा करते देख अहंकार से भर चुके साधुओं ने शिव को दंडित करने की योजना बनाई। उन्होंने मंत्र की शक्ति से एक दानव और कई सांपों का सृजन किया। उन सभी ने मिलकर शिव को मारने के उद्देश्य से उन पर हमला कर दिया। ये देखकर शिव ने एक अनोखा रूप धारण कर एक नृत्य की मुद्रा लेकर सभी दानवों और सांपों का संहार कर दिया। नटराज की मूर्ति में भगवान को शिव नागों से लिपटा हुआ दिखाया गया है ये अनुपम दृश्य देखकर साधुओं का अहंकार एक पल में चकनाचूर हो गया और उन्हें शिव की माया को समझते हुए देर नहीं लगी। इस तरह नटराजन की मूर्ति को सृजन और विनाश दोनों के प्रतीक के रूप में जाना जाता है…Next
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