हिंदू पंचांग के मुताबिक माघ माह और भगवान विष्णु का बेहद महत्वपूर्ण जुड़ाव है। इस माह भगवान विष्णु पृथ्वी पर अपने भक्तों के कष्टों को हरने के लिए बैकुंठ से प्रस्थान करते हैं। माघ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भगवान विष्णु गंगा में स्नान करने के बाद भक्तों को वरदान देते हैं। मान्यता है जो भी भक्त पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के बाद श्रीहरि की पूजा और आराधना करता है उसे बैकुंठ हासिल हो जाता है।
माघ माह और भगवान विष्णु
भगवान विष्णु सूर्य के दक्षिणायन में रहने के बाद उत्तरायण में आने पर निद्रा से उठकर गंगा स्नान करने पृथ्वी पर पधारते हैं। मान्यता है कि विष्णु माघ माह की एकादशी के दिन पृथ्वी पर आते हैं। इसीलिए शास्त्रों में जया एकादशी कहा गया है। इस दिन वह अपने भक्तों के पापों और कष्टों से मुक्ति प्रदान करते हैं। इसको लेकर एक कथा प्रचलित है कि विष्णु ने गंधर्व प्रेमी युगल पुष्पवती और माल्यवान को इंद्र के श्राप से मुक्त कर स्वर्ग में रहने का आशीर्वाद दिया था। यह जया एकादशी का दिन था।
संगम में स्नान और संकल्प
भगवान विष्णु जया एकादशी से ही पृथ्वी पर विचरण करते हैं और माघ माह की पूर्णिमा को गंगा स्नान कर अपनी इच्छा पूरी करते हैं। मान्यता है कि वह गंगा स्नान के लिए प्रयाग के संगम में डुबकी लगाने पहुंचते हैं। मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति संगम तट पर गंगा में नहाकर भगवान विष्णु की आराधना करेगा उसे कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी। इसीलिए संगम तट के अलावा देशभर की अन्य पवित्र नदियों में माघ पूर्णिमा के दिन नहाने की परंपरा है।
सूर्योदय का वक्त और अर्घ्य
माघ पूर्णिमा के दिन स्नान और पूजा को लेकर भी कई नियम और विधियां शास्त्रों में बताई गई हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन प्राताकाल पवित्र नदी में स्नान के लिए सूर्योदय के समय को ही उपयुक्त बताया गया है। अगर गंगा में स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो नहाने वाले पानी में गंगाजल घोलना चाहिए। स्नान के बाद जल में रोली डालकर सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने के उपरांत श्रीहरि का स्मरण कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिन के दूसरे पहर में ब्राह्मणों को भोजन के बाद काले तिल का दान करना चाहिए।
मंत्र जाप और बैकुंठ प्राप्ति
मान्यता है कि जो भी व्यक्ति मृत्यु के बाद बैकुंठ या स्वर्ग में जाने की इच्छा रखते हैं और पापों की मुक्ति के लिए भगवान विष्णु की आराधना और व्रत का पालन करते हैं। उन्हें पूजा विधि और नियमों का पालन करने के साथ ही व्रत के दौरान मंत्र ‘माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्त’ का जाप बराबर करते रहना चाहिए। कहा जाता है कि इससे बचे हुए जीवन के और मृत्यु के दौरान होने वाले कष्टों पापों से इंसान मुक्त होकर मोक्ष हासिल बैकुंठ और स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर जाता है।…Next
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