महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर के राजा बने युधिष्ठिर को सच बोलने के लिए धर्मराज कहा गया। लंबे समय तक शासन करने वाले युधिष्ठिर जब स्वर्ग यात्रा के दौरान अंतिम पड़ाव पर पहुंचे तो उनकी स्वर्ग के राज इंद्र से पालतू कुत्ते को लेकर बहस छिड़ गई। बहस इतनी बढ़ गई कि स्वयं यमराज को हस्तक्षेप करना पड़ा।
सभी कौरवों की मृत्यु
अधिकार और हक की लड़ाई के लिए 18 दिनों तक कुरुक्षेत्र में चले महाभारत युद्ध में कौरवों की सेना को पराजय मिली और सभी कौरवों को युद्ध में मृत्यु हासिल हुई। युद्ध के पश्चात महाराज धृतराष्ट ने भरे मन से पांडवों को राजपाट सौंप दिया। लंबे समय तक हस्तिनापुर पर शासन चलाने वाले युधिष्ठिर को जब यदुवंश में कलह के बाद युद्ध का समाचार मिला तो वह व्याकुल हो उठे।
यदुवंशियों का नाश
यदुवंशियों के आपस में लड़ मरने के कारण द्वारिका नगरी में महिलाएं बच्चे और बुजुर्ग ही बचे। उनकी सुरक्षा के लिए युधिष्ठिर ने अर्जुन को भेजा। श्रीकृष्ण के शरीर त्यागने के कई साल बाद युधिष्ठिर ने भी राजपाट त्यागने का फैसला कर लिया और स्वर्ग की यात्रा पर जाने का निश्चय कर लिया।
परीक्षित और युयुत्सू को राजपाट सौंपा
युधिष्ठिर के निश्चय पर भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी ने भी तीर्थ करने यात्रा पर साथ चलने का निर्णय लिया। महर्षि वेदव्यास के सुझाव के बाद भव्य समारोह में महाराज युधिष्ठिर ने युवराज परीक्षित का राज्याभिषेक किया और युयुत्सू को राजपाट की देखभाल करने की जिम्मेदारी सौंप दी।
कुत्ते की भक्ति और स्वर्ग यात्रा
युधिष्ठिर अपने चारों भाईयों और द्रौपदी को साथ लेकर हिमालय की ओर बढ़ चले। इन लोगों के साथ युधिष्ठिर का पालतू कुत्ता भी चल दिया। नकुल और सहदेव ने कई बार उस कुत्ते को रास्ते से भगाया और हस्तिनापुर लौटने को कहा लेकिन वह कुत्ता हस्तिनापुर नहीं लौटा। बाद में युधिष्ठिर ने नकुल और सहदेव को उसे न भगाने को कहा। यह कुत्ता युधिष्ठिर का परमभक्त था और उनकी हमेशा सहायता करता था।
द्रौपदी और पांडवों ने शरीर छोड़ा
यात्रा के दौरान पांडवों ने कई तीर्थ स्थल, पर्वत, रेगिस्तान और वनों को पार करते हुए हिमालय के नजदीक पहुंचने लगे। इस दौरान धीरे धीरे युधिष्ठिर के भाई क्रमशा द्रौपदी समेत रास्ते में मूर्छित होकर गिरने लगे और मृत्यु को प्राप्त हो गए। युधिष्ठिर अपने भाईयों के साथ छोड़ने से दुखी हुए। इस दौरान कुत्ते ने युधिष्ठिर का साथ नहीं छोड़ा।
युधिष्ठिर और इंद्र में छिड़ी बहस
सुमेरु पर्वत और हिमालय पार करने के बाद जब युधिष्ठिर रेतीली जमीन पर पहुंचे तो वहां एकाएक स्वर्ग के राजा इंद्र प्रकट हो गए। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि वह उन्हें स्वर्ग ले जाने आए हैं। युधिष्ठिर ने अपने चारों भाइयों और द्रौपदी को जीवित करने को कहा। इस पर इंद्र ने बताया कि वह सभी शरीर त्यागकर पहले ही स्वर्ग लोक पहुंच चुके हैं और अब उनकी स्वर्ग जाने की बारी है।
कुत्ते को स्वर्ग ले जाने निर्णय
युधिष्ठिर ने इंद्र से कुत्ते को भी स्वर्ग ले जाने की विनती की पर इंद्र ने मना कर दिया। इस पर युधिष्ठिर और इंद्र के बीच बहस छिड़ गई। युधिष्ठिर ने कहा कि वह अपना सबकुछ पीछे छोड़कर आए हैं। इस यात्रा के दौरान दुर्गम परिस्थितियों से जूझना पड़ा है। अर्जुन समेत सभी भाई और द्रौपदी ने भी यात्रा में मेरा साथ छोड़ दिया किंतु इस कुत्ते ने मेरी अंतिम यात्रा में भी मेरा साथ नहीं छोड़ा है।
यमराज को करना पड़ा हस्तक्षेप
युधिष्ठिर ने कहा कि इसे लिए बिना मैं स्वर्ग चला जाउं ये हो नहीं सकता। मैं पाप का भागी नहीं बन सकता। यह मेरा परमभक्त है और मैं इसे अकेला छोड़कर नहीं जाउंगा। इंद्र के तमाम समझाने पर भी युधिष्ठिर अडिग रहे और इंद्र को स्वर्ग लौट जाने को कह दिया। इंद्र और युधिष्ठिर की बहस को रोकने के लिए कुत्ते के भेष में युधिष्ठिर के साथ रहे यमराज अपने असली स्वरूप में आ गए।
धर्मराज और पांडव स्वर्ग पहुंचे
यमराज ने कहा कि धर्मराज आपकी सत्यता से मैं निर्भिज्ञ नहीं था, लेकिन आज आपकी निष्ठा और धर्मपालन में स्थिर रहने का भी साक्षी बन गया। यमराज ने कहा कि आप सच में धर्मराज हैं और आप सशरीर स्वर्ग में जाएंगे। इस प्रकार इंद्र और युधिष्ठिर के बीच चल रही बहस को यमराज ने समाप्त कर दिया।
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