महाभारत ग्रंथ के रचयिता, अट्ठारह पुराण, श्रीमद्भागवत और मानव जाती को अनगिनत रचनाओं का भंडार देने वाले ‘वेद व्यास’ को भगवान का रूप माना जाता है. वेद व्यास का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन है लेकिन वेदों की रचना करने के बाद वेदों में उन्हें वेद व्यास के नाम से ही जाना जाने लगा. उनके द्वारा रची गई श्रीमद्भागवत भी उनके महान ग्रंथ महाभारत का ही हिस्सा है.
वेद व्यास महान ऋषि थे जिन्होंने वेदों को चार भागों में वर्णन किया. इतना ही नहीं वेद व्यास ने महाभारत की ना केवल रचना की बल्कि उसके हर एक अंश को खुद अनुभव किया है. महाभारत की सभी गतिविधियों की सूचना उन्हें उनकी आश्रम में ही मिल जाती थीं, जिसके साथ ही वे उन घटनाओं पर परामर्श भी देते थे. सूचनाओं के अलावा महाभारत का एक बहुत खास चेहरा उनसे समय-समय पर उनके आश्रम में मिलने भी आता था. वेद व्यास से मिलने के पीछे केवल हस्तिनापुर में चल रहीं समस्याओं का समाधान पाना ही उसका उद्देश्य नहीं था, बल्कि उस शख्स का वेद व्यास से कोई गहरा संबंध था.
महर्षि वेद व्यास जिन्हें भगवान का दर्जा दिया गया है ना केवल महाभारत के रचियता थे बल्कि महाभारत युग में मौजूद एक खास शख्स से उनका गहरा संबंध था और वो शख्स कोई और नहीं बल्कि स्वंय हस्तिनापुर की राजमाता ‘सत्यवती’ थीं. यह तथ्य बहुत कम लोग जानते हैं कि वेद व्यास व सत्यवती का एक पवित्र रिश्ता था, और वो रिश्ता है ‘मां व संतान’ का. सत्यवती महर्षि वेद व्यास की माता थीं.
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सत्यवती का जन्म
पुराणों में विख्यात कथाओं में सत्यवती के जन्म का विवरण है जिसके मुताबिक वे एक अप्सरा रूपी मछली की कन्या थी. यह प्राचीन काल की बात है जब सुधन्वा नाम का एक राजा अपनी पत्नी से दूर वन की ओर निकला ही था कि उसे अपनी पत्नी के रजस्वला होनी की खबर मिली. यह सुनते ही राजा ने अपना वीर्य निकाल कर एक शिकारी पक्षी द्वारा महल पहुंचाने का निश्चय किया.
वह पक्षी वन से महल की ओर बढ़ा तो लेकिन रास्ते में एक दूसरे पक्षी से द्वंद्व करते समय उसके पंजों से वीर्य समुद्र में जा गिरा जहां एक सुंदर अप्सरा रूपी मछली थी. वो मछली उस वीर्य को निगल गई जिसके फलस्वरूप वो गर्भवती हो गई. एक दिन अचानक एक निषाद ने उस गर्भवती मछली को अपने जाल में फंसा लिया और जब उसने मछली को चीरा तो उसमें से दो बच्चे निकले, एक पुत्र व एक पुत्री.
निषाद तुरंत ही उन दोनों को लेकर राजा के पास गया और उन्हें देखते ही राजा ने पुत्र को अपने पास रख लिया और पुत्री निषाद को वापिस सौंप दी. इसी पुत्री को बाद में सत्यवती के नाम से जाना गया, जिसके शरीर से मछली के गर्भ से जन्म लेने के कारण मछली की ही गंध आती थी.
वेद व्यास का जन्म
जब सत्यवती बड़ी हुई तो उसने नाव चलाकर लोगों को नदि पार करने में मदद करनी शुरु की. इसे दौरान एक दिन वहां महान मुनिवर पराशर आए और सत्यवती से यमुना पार कराने का आग्रह किया. मुनिवर सत्यवती के सुंदर रूप को देख आसक्त हो गए और बोले, “देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ. यह सुन सत्यवती अचंभित हो उठी और बोली, “मुनिवर! आप महान ऋषि हैं और मैं एक साधारण कन्या, यह संभंव नहीं.”
आखिरकार सत्यवती ने पराशर के प्रस्ताव को स्वीकार तो किया लेकिन तीन शर्तें रखीं, पहली शर्त की- दोनों को प्रेम संबंधों में लीन होते हुए कोई ना देखे तो पराशर ने अपनी दिव्य शक्ति से चारों ओर एक गहरा कोहरा उत्पन्न किया. दूसरी शर्त यह कि प्रसूति होने पर भी सत्यवती कुमारी ही रहे और तीसरी यह कि सत्यवती के शरीर से मछली की गंध हमेशा के लिए खत्म हो जाए. पराशर ने सभी शर्तों को स्वीकारा व मछली की गंध को सुगन्धित पुष्पों में बदल डाला.
सत्यवती की गर्भ से पुत्र ने जन्म लिया
कुछ समय के पश्चात् सत्यवती के गर्भ से पुत्र ने जन्म लिया और जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला, “माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाऊंगा.” यह कहकर वह बालक तपस्या करने के लिए द्वैपायन द्वीप चला गया.
तपस्या के दौरान द्वैपायन द्वीप में सत्यवती के पुत्र का रंग काला हो गया और इसीलिए उन्हें कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाने लगा. इसी पुत्र ने आगे चलकर महान ग्रंथों व वेदों का वर्णन किया जिसके कारण वे पुराणों में वेदव्यास के नाम से विख्यात हुए.
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