Narad Jayanti 2020: हिंदू पुराणों में नारद मुनि को विशेष दर्जा प्राप्त है। वह देवलोक में सूचनाओं के आदान प्रदान और कभी भी कहीं भी आसानी से पहुंचने वाले अकेले देवर्षि हैं। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को उनकी जयंती मनाई जाती है। दो श्राप मिलने की वजह से नारद मुनि कभी अपने विवाह की इच्छा पूरी नहीं कर सके। आईए जानते हैं उनके जन्म, विवाह और श्राप मिलने की कथाओं के बारे में।
पूर्व जन्म में थीं 60 पत्नियां
पौराणिक कथाओं के अनुसार नारदमुनि अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व थे और उनकी 60 पत्नियां थीं। एक बार गंधर्व और अप्सराएं ब्रह्मदेव की पूजा करने में व्यस्त थे। इसी दौरान नारद मुनि अपनी पत्नियों के साथ वहां पहुंचे और भोग विलास में लिप्त हो गए। नारद की यह दशा देख नाराज ब्रह्मदेव ने श्राप दे दिया कि अब तुम कभी विवाह नहीं कर सकोगे और अगले जन्म में शूद्र हो जाओगे।
पहले श्राप से शूद्र के घर जन्मे
जब नारद का जन्म शूद्र दासी के घर हुआ और वह बड़े हुए तो उनमें विवाह की लालसा जाग उठी। नारद ने अपनी लालसा और पापों की मुक्ति के लिए भगवान विष्णु की आराधना शुरू कर दी। शूद्रपुत्र की तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु ने अगले जन्म में अपने निकट रहने का वरदान दे दिया।
विष्णु के वरदान से मानसपुत्र कहलाए
बाद में जब नारद मुनि का जन्म हुआ तो वह ब्रह्मदेव के मानस पुत्र कहलाए और तीनों लोकों में कहीं भी विचरण करने का वरदान हासिल किया। जिज्ञासु प्रवत्ति के नारद मुनि एक बार राजा दक्ष के यहां पहुंच गए। राजा दक्ष को पत्नी आसक्ति से 10 हजार पुत्र प्राप्त हुए थे। नारद ने सभी पुत्रों को मोक्ष पाने की शिक्षा दे दी। इससे दक्ष के सभी पुत्रों ने राजपाठ त्याग दिया ओर मोक्ष के मार्ग पर बढ़ गए।
दूसरे श्राप से जीवनभर भटके
अपने सिंहासन को उत्तराधिकारी विहीन पाकर राजा दक्ष क्रोधित हो गए और उन्होंने नारद मुनि को जीवन भर भटकने का श्रप दे दिया। दक्ष ने कहा कि जिस तरह से तुमने मेरे पुत्रों को मोक्ष का नाटक दिखाकर भटका दिया है उसी तरह तुम भी जीवन भर भटकते रहोगे और तुम्हें पुत्र सुख कभी प्राप्त नहीं होगा।
सौंदर्य का अहंकार ले डूबा
ब्रह्मदेव और राजा दक्ष से मिले श्राप के कारण नारद मुनि अविवाहित थे और एक लोक से दूसरे लोक की यात्रा करते रहते थे। इस बीच एक बार उन्हें अपने मनमोहक रूप पर अहंकार हो गया। उनके अहंकार को तोड़ने के लिए विष्णु भगवान ने माया नगर का निर्माण कराया और वहां की सुंदर राजकुमारी के स्वयंवर की सूचना नारद तक पहुंचा दी।
खुद भी दे दिया श्राप
नारद ने जब राजकुमारी को देखा तो उसके सौंदर्य के पाश में फंस गए। नारद भागते हुए विष्णु के पास पहुंचे और अपने जैसा रूप देने का वरदान मांगा। विष्णु के वरदान से नारद का मुंह बंदर जैसा हो गया और स्वयंवर में उन्हें राजकुमारी समेत अन्य आगंतुकों से तिरस्कार मिला। अपमान से दुखी नारद ने जब अपना मुख देखा तो वह समझ गए और विष्णु को पत्नी का वियोग झेलने का श्राप दे दिया। जिसके फलस्वरूप विष्णु ने राम के रूप में धरती पर जन्म लिया।…Next
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