नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान शास्त्रों में बताया गया है। इन दिनों में मां दुर्गा के अलग अलग रूपों की पूजा करने से दुखों का नाश होता है और घर में सुख समृद्धि का आगमन होता है। मां की पूजा के लिए कई नियमों के बारे में भी शास्त्रों में वर्णन किया गया है। इन विधियो में कन्या भोज महत्वपूर्ण विधि और कार्य है। इस कार्य के सही विधि से नहीं होने पर आपकी मनोकामनाएं पूरी होने में संकट हो सकता है। इस विधि में कन्या भोज के दौरान एक बालक को भी शामिल करना अनिवार्य बताया गया है।
प्राताकाल स्नान अनिवार्य
शास्त्रों में वर्णन है कि नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना के बाद कन्या भोज अनिवार्य है। विशेषकर कलश स्थापना करने वालों और नौ दिन का वृत रखने वालों को लिए इसे बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। लोग कन्या पूजा नवरात्रि पर्व के किसी भी दिन या कभी भी कर सकते हैं। लेकिन, अष्टमी और नवमी को कन्या भोज कराना चाहिए। इस दौरान भोज से पहले सभी नौ कन्याओं का पूजन भी अनिवार्य बताया गया है। इसके लिए साधक को प्रातः काल स्नान करके प्रसाद में खीर, पूरी, और हलवा आदि तैयार करना चाहिए।
पांव पखारना आवश्यक
नवरात्रि में देवी मां के सभी साधक कन्याओं को मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप मानकर उनकी पूजा करते हैं। सनातन धर्म के लोगों में सदियों से ही कन्या पूजन और कन्या भोज कराने की परंपरा है। भोजन तैयार हो जाने के बाद साधक को चाहिए कि वह कन्याओं को बुलाकर शुद्ध जल से उनके पांव धोए। कन्याओं के पांव धुलने के बाद उन्हें साफ आसन पर बैठाना चाहिए।
पहले मां दुर्गा को भोग
भविष्यपुराण और देवीभागवत पुराण में कन्या पूजन का वर्णन किया गया है। इस वर्णन के अनुसार नवरात्रि का पर्व कन्या भोज के बिना अधूरा है। कन्याओं को भोजन परोसने से पहले मां दुर्गा का भोग लगाना जरूरी है। इसके बाद प्रसाद स्वरूप में कन्याओं को उसे खिलाना चाहिए।
भैरव बाबा की उपस्थिति
नौ कन्याओं के एक साथ एक छोटे बालक को भी भोज कराने का प्रचलन है। बालक भैरव बाबा का स्वरूप या लंगूर कहा जाता है। कन्याओं को भरपेट भोजन कराने के बाद उन्हें टीका लगाएं और कलाई पर रक्षा बांधें। कन्याओं को विदा करते वक्त अनाज, रुपया या वस्त्र भेंट करें और उनके पैर छूकर आशिर्वाद प्राप्त करें।
सभी कन्याओं की उम्र
कथाओं में कन्याओं की उम्र के अनुसार उनके नाम भी दिए गए हैं। दो वर्ष की कन्या को कन्या कुमारी, तीन साल की कन्या को त्रिमूर्ति, चार साल की कन्या को कल्याणी, पांच साल की कन्या को रोहिणी, छह साल की कन्या को कालिका, सात साल की कन्या को चंडिका, आठ साल की कन्या को शाम्भवी, नौ साल की कन्या को दूर्गा और 10 साल की कन्या को सुभद्रा का स्वरूप माना जाता है।…Next
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