शारदीय नवरात्र के चलते चारों ओर माहौल भक्तिमय हो गया है। इस दौरान हिंदू धर्म के अनुयायी मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि विधान से पूजा करते हैं। मां भक्तों के मनोवांछित फल की कामना पूरी होने का वरदान देती हैं। देवी देवताओं के वाहनों को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। मां दुर्गा हमेशा सिंह पर सवार रहती हैं। उनके नौ रूपों में से कई रूप भी सिंह की सवारी करते हैं। आईए जानते हैं सिंह कैसे मां दुर्गा की सवारी बना।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार मां भगवती ने हर जन्म में भगवान शिव को अपना पति बनाने का संकल्प लिया। जब मां भगवती देवी पार्वती के स्वरूप में जन्मीं तो वह भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए जतन करने लगीं। शिव को पति रूप में हासिल करने के लिए मां पार्वती को कठोर तप करना पड़ा। वह कई वर्षों तक हिमालय की कंदराओं में तपस्या में लीन रहीं। देवी पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी इच्छा पूरी होने का वरदान दिया। इसके बाद देवी पार्वती और भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ। इस विवाह में देवी-देवता, मुनि और साधुओं ने भी हिस्सा लिया।
प्रचलित कथाओं के मुताबिक विवाह के कुछ समय बाद कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव ने विहार के दौरान विनोद में हंसी-ठिठोली करते हुए मां पार्वती को काली कह दिया। दरअसल, पति स्वरूप में भगवान शिव को हासिल करने के लिए कई वर्षों तक तपस्या करने के कारण देवी पार्वती का रंग श्याम हो गया था। भगवान शिव के इस मजाक से मां पार्वती नाराज हो गईं और वह अपने रंग को गोरा करने के लिए फिर से तप करने के लिए हिमालय की ओर बढ़ गईं। इस दौरान एक भूखा शेर मां पार्वती को अपना शिकार बनाने के लिए घात लगाकर बैठ गया। कंदरा में मां पार्वती ने ध्यान लगाया और तपस्या में लीन हो गईं। इस दौरान भूखा शेर देवी के उठने के इंतजार में उनके सामने वहीं बैठ गया।
मां पार्वती कई साल तक अपनी तपस्या में डूबी रहीं। इस दौरान वह शेर भी वहीं देवी के उठने के इंतजार में बैठा रहा। जब कई साल गुजर गए तो भगवान भोलेनाथ मां पार्वती के तप से प्रसन्न हो गए और उन्होंने पार्वती को गौर वर्ण पाने का वरदान दिया। कथाओं के मुताबिक इसके बाद मां पार्वती सरोवर (गंगा नदी) में स्नान करने के लिए कहा गया। जब मां पार्वती सरोवर से स्नान करके लौटीं तो उनका श्याम रंग गोरे रंग में बदल गया। इसके बाद मां पार्वती को गौरी के नाम से भी जाना गया। मां पार्वती ने शेर को वहीं बैठा पाया तो वह शेर के धैर्य से प्रसन्न हो गईं। उन्होंने शेर के इस इंतजार को कठिन तप मानते हुए उसकी भूख को शांत किया और उसे अपनी सवारी बना लिया।…Next
Read Comments