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वर्षों तपस्‍या कर लौटीं मां पार्वती के स्‍वरूप को देखकर अचंभित हो गए थे भगवान शिव, जानिए महागौरी की कथा

शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूवरूपों की पूजा का विधान है। इन दिनों में माता की आराधना करने से साधक के सभी दुखों का नाश होने के साथ उसके घर में सुख समृद्धि का वास बढ़ जाता है। मां के सभी स्‍वरूपों के लिए अलग अलग तरह से पूजा विधियां भी शास्‍त्रों में बताई गईं। माता के प्रत्‍येक अवतार के लिए अलग अलग कथा का भी वर्णन मिलता है। मां दुर्गा के आठवें स्‍वरूप यानी महागौरी के अवतार पर भी एक कथा बेहद प्रचलित है।

Rizwan Noor Khan
Rizwan Noor Khan6 Oct, 2019

 

Navratri 2019 Maa Mahagauri Puja Vidhi and Mantra: आज दुर्गाष्टमी को करें महागौरी की पूजा, ये है मंत्र और महत्व

 

हिंदू मान्‍यताओं के तहत कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव माता पार्वती के साथ विहार कर रहे थे। इस बीच दोनों लोगों के बीच किसी बात को लेकर वार्ता छिड़ गई। भगवान भोलेनाथ की एक बात से माता पार्वती को गहरा धक्‍का लगा और वह नाराज होकर कैलाश छोड़कर जाने लगीं। भगवान शिव की तमाम कोशिशों के बावजूद वह नहीं रुकीं और तप करने चली गईं।

 

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कई वर्षों तक माता वापस नहीं आईं, तो भगवान शिव को चिंता होने लगी और वह माता पार्वती की उनकी खोज में निकल पड़े। जब वह माता पार्वती से मिले तो वे उनका स्वरूप देखकर दंग रह गए। उस समय माता पार्वती अत्यंत गौर वर्ण की हो गई थीं। भगवान शिव ने उनको गौर वर्ण का वरदान दिया, जिससे वह माता महागौरी कहलाने लगीं।

 

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एक अन्‍य पौराणिक कथा के मुताबिक माता शैलपुत्री 16 वर्ष की अवस्था में अत्यंत्र सुंदर और गौर वर्ण की थीं। अत्यंत गौर वर्ण के कारण ही माता का नाम महागौरी पड़ा। माता महागौरी बैल पर सवार रहती हैं, इसलिए इनको वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। माता की चार भुजाएं हैं। वह अपने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं और दूसरे दाएं हाथ को अभय मुद्रा में रखती हैं। जबकि, बाएं हाथ में डमरू और दूसरे को वरद मुद्रा में रखती हैं। श्‍वेत वस्‍त्र धारण करने के कारण माता को श्‍वेतांभरा के नाम से भी जाना जाता है।…Next

 

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