नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान शास्त्रों में बताया गया है। माता की पूजा के दौरान अलग अलग विधियों और नियमों का पालन साधक को करना पड़ा है। माता की आराधना में पूजा, व्रत, कन्या पूजन, कन्या भोज और दान के साथ ही हवन कराने की परंपरा है। हवन के साथ ही नवरात्रि की पूजा को पूरा माना जाता है। जो साधक कलश स्थापना करते हैं उनके लिए हवन कराना अनिवार्य हो जाता है। हवन के लिए मुख्य पांच नियम बताए गए हैं जिनका पालन करना आवश्यक है।
हवन सुख समृद्धि का स्रोत
मान्यता है कि नवरात्रि के अंतिम दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा के बाद हवन किया जाता है। हवन कराने से घर से नकारात्मक ऊर्जा निकल जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ जाता है। इससे साधक के यहां सुख समृद्धि का वास हमेशा के लिए हो जाता है।
वैदिक कर्मकांड
ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र के अनुसार माता को प्रसन्न करने के लिए किए जाने वाले हवन में हम जिन औषधीय पदार्थों की आहुति दी जाती है उनकी गंध से आसपास का वातावरण स्वच्छ हो जाता है। हवन को एक वैदिक कर्मकांड भी बताया गया है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार हवन हर व्यक्ति को सुख समृद्धि हासिल करने के लिए अवश्य करवाना चाहिए।
खुद से हवन कर सकते हैं पर नियम कठिन
मान्यता है कि किसी पुरोहित या पंडित के जरिए ही हवन को संपन्न कराया जाता है। कुछ जानकार यह भी बताते हैं कि यदि पुरोहित न हो तो साधक स्वयं भी हवन कर सकता है। इसके लिए साधक को कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना होता है। जैसे प्राताकाल शुद्ध जल स्नान, मन को शांतचित्त और विकार विहीन करना, उस वक्त के लिए सांसारिक वस्तुओं का परित्याग करना भी शामिल है।
आम के तने और पत्ते के बिना अनुष्ठान अधूरा
हवन करने के लिए कई तरह की जड़ी बूटियों और वस्तुओं की जरूरत पड़ती है। इनमें आम की लकड़ी और पत्ता, पीपल का तना और छाल, गूलर की छाल, बेल, पलाश, चंदन की लकड़ी, नीम, अश्वगंधा, ब्राह्मी, मुलैठी की जड़, चावल, तिल, लौंग, कर्पूर, गाय का घी, गुग्गल, इलायची, लोभान, शक्कर और जौ प्रमुख हैं। इसके साथ ही एक सूखा नारियल या गोला, कलावा या लाल रंग का कपड़ा और एक हवन कुंड का होना भी अतिआवश्यक है।
पुरोहित और जजमान
हवन सामग्री एकत्र करने के बाद आम की लकड़ी और कर्पूर को हवन कुंड में रखकर आग जलानी होती है। इसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ हवन की शुरुआत हो जाती है। इस दौरान एकत्र की गई सामग्री को बारी बारी से हवन में स्वाहा कर दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि हवन किसी पुरोहित से ही कराना चाहिए और साधक को जजमान की भूमिका निभानी चाहिए। क्योंकि हवन विधि के दौरान कई तरह के मंत्रोच्चार और नियमों का पालन किया जाता है।…Next
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