हिंदू मान्यताओं के अनुसार जन्म और मरण के चक्र से मुक्ति हासिल करने के लिए भगवान विष्णु के पद्मनाथ अवतार पूजा करने का विधान है। शास्त्रों में कहा गया है कि पापांकुश द्वादशी पर व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत भगवान पद्मनाभ को समर्पित होता है। मान्यता है कि इस व्रत की पूजा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और साधक को कभी भी धन की कमी भी नहीं होती है। व्रत और भगवान की पूजा के 5 प्रमुख नियम बताए गए हैं। मान्यता है कि इन नियमों के पालन से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
पूजा का विशेष संयोग
हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से जन्म मृत्य के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। इसके लिए भगवान विष्णु के पद्मनाभ अवतार की पूजा करनी होती है। इसे पद्मनाभ द्वादशी व्रत भी कहा जाता है। इस बार यह द्वादशी व्रत आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को रखने का मुहुर्त बन रहा है। यह तिथि 10 अक्टूबर यानी गुरुवार को है। यह दिन भगवान विष्णु की आराधना के लिए सबसे उपयुक्त दिन बताया गया है। ऐसे में इस बार की द्वादशी विशेष संयोग लेकर आई है।
नए कार्य की शुरुआत शुभ
मान्यता है कि पद्मनाभ अवतार की आराधना से मनुष्य के सभी दुखों का नाश हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस दिन किसी भी तरह के नए कामों को करना शुभ माना जाता है। इस दिन से व्यापार, लेन देन के कामों की शुरुआत की जा सकती है।
पूर्व संध्या से ही आराधना शुरू
पद्मनाभ द्वादशी की पूजा के लिए साधक को पूर्व संध्या से ही भगवान की आराधना शुरू करनी होती है। इसके लिए सबसे पहले भगवान पद्मनाभ अवतार की आरती की जाती और फिर सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है। अगले दिन प्राताकाल सरोवर या नदी में स्नान करने के बाद व्रत रखा जाता है।
जीवन भर धन की कमी नहीं होगी
भगवान विष्णु की शेषनाग पर विश्राम करते स्वरूप पद्मनाभ की पूजा की जाती है। इस व्रत पूजा से भगवान विष्णु तो प्रसन्न होते ही हैं माता लक्मी की कृपा भी साधक को प्राप्त होती है। ऐसे में माता लक्ष्मी से साधक को धनप्राप्ति का वरदान हासिल होता है, जिससे उसके पास जीवन भर धन की कमी नहीं रहती है।
गुड़ और पीले पुष्प भेंट करना आवश्यक
पद्मनाभ अवतार की पूजा के दौरान साधक को स्नान के बाद मस्तक पर चंदन का लेप लगाना होता है। इसके अलावा भगवान को पीले फूल, गुड़, मौसमी फल भेंट करना अनिवार्य होता है। इस दौरान साधक का सांसारिक सुखों से दूर रहना भी प्रमुख कार्य होता है। भगवान की आरती के दौरान घी के दिए काइस्तेमाल किया जाना चाहिए और पूजा की समाप्ति पर प्रसाद बांटने को आवश्यक कार्य शास्त्रों में बताया गया है। …Next
मां पार्वती का शिकार करने आया शेर कैसे बन गया उनकी सवारी, भोलेनाथ से जुड़ी है रोचक कथा
Read Comments