हिंदू मान्यताओं के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन को सुख-शांति और समृद्धि से व्यतीत करने के लिए कई तरह के व्रत रखने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। इन व्रतों में नवरात्रि व्रत, पूर्णिमा व्रत, अमावस्या व्रत समेत एकादशी के व्रत को शामिल किया गया है। वैसे तो यह सभी व्रत महत्वपूर्ण हैं लेकिन पापांकुश एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। विष्णु के प्रसन्न होने पर वह साधक की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं और दुखों का नाश भी कर देते हैं। आज पापांकुश एकादशी है और इसके व्रत को रखने के लिए 5 प्रमुख नियम भी बताए गए हैं जिनका पालन साधक को हर हाल में करना होता है। अन्यथा उसकी इच्छाएं पूर्ण नहीं होती हैं।
संध्या से ही आराधना जरूरी
हिंदू मान्यताओं और पंचांग के अनुसार पापांकुश एकादशी का व्रत अश्विन महीने के शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन रखा जाता है। पापांकुश एकादशी व्रत कथा के अनुसार महाभारतकाल में भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी की महिमा बताई थी। पापांकुश एकादशी का व्रत रखने और पूजा विधि के लिए कई तरह के नियमों का पालन अनिवार्य बताया गया है। पहले नियम के अनुसार साधक को प्राताकाल या पूर्व संध्या से ही भगवान विष्णु की आराधना शुरू कर देनी चाहिए। इस दौरान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप का पूजन किया जाता है।
स्नान विधि महत्वपूर्ण
पूजन से पूर्व साधक को शुद्ध जल से स्नान करना अनिवार्य बताया गया है। इसके लिए कई विद्वान मानते हैं कि सरोवर, बहती झील या फिर झरने के जल से स्नान करना चाहिए। ऐसा माना जाता कि बहता जल अन्य जल की अपेक्षा ज्यादा शुद्ध और पवित्र होता है। ऐसे में साधक को स्नान का विशेष ध्यान रखना होता है।
सांसारिक सुखों और चंदन का महत्व
पापांकुश एकादशी का व्रत रखने वाले साधक के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह सांसारिक सुखों और मोह से व्रत के दौरान दूर रहे। ऐसा न करने पर उसे व्रत का फल मिलने में देरी हो सकती है या न भी मिले। वहीं, स्नान के बाद साधक अपने ललाट पर सफेद चन्दन लगाकर ही पूजन विधि को संपन्न करें।
पंचामृत अतिआवश्यक
साधक पूजन के दौरान भगवान पद्मनाभ को प्रसन्न करने के लिए पंचामृत, सुगंधित पुष्प और मौसमी फलों का भोग लगाएं। इसके अलावा साधक का व्रत के पूर्व सात्विक आहार ग्रहण करना भी जरूरी है। ताकि वह पूरे दिन भगवान की पूजा करने में स्वयं को अस्वस्थ महसूस न करे और पूरे वक्त सचेत रहकर आराधना कर सके।
सात्विक भोजन
जो साधक शरीर से पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं और वह भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत करना चाहते हैं उनके लिए एक बेला में उपवास रखने की बात भी कही गई है। दूसरी बेला में उन्हें सात्विक भोजन ग्रहण करने की अनुमति दी गई है। हालांकि, ऐसे जातक पुरोहित के निर्देशन में व्रत पूजा करें।
दान करना अहम
पापांकुश एकादशी की पूर्व संध्या पर भगवान विष्ण के पद्मनाभ स्वरूप की आरती करना साधक के लिए अनिवार्य बताया गया है। इसके लिए साधक को भूखे पेट रहना होता है और आरती की प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात ही वह सात्विक भोजन ग्रहण कर सकता है। एकादशी के दिन पूजन और व्रत के दौरानऋतुफल और अन्न का दान करना शुभकारी माना गया है।…Next
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