रामनवमी के दिन हाथों में लाल कपड़े में लिपटी पूंजी लिए वाराणसी के इस बैंक में सैकड़ों राम भक्त इकट्ठा हुए हैं. इस पूंजी को इन्होंने इस बैंक से कर्ज के रूप में लिया था जिसे ये अब लौटाने आए हैं. यह कर्ज है बैंक द्वारा निर्धारित संख्या में राम नाम लिखने का कर्ज. निर्धारित संख्या में राम नाम लिखने के बाद ये लोग उन पोथियों को इस बैंक में जमा कराने आएं हैं जिनपर महीनों तक उन्होंने राम-राम लिखा है. तकरीबन 85 साल पुराना यह बैंक देश का ऐसा इकलौता बैंक है.
गंगा के तट पर बसी काशी नगरी का हिंदू धर्म में क्या स्थान है यह बताने की जरूरत नहीं है. देश-विदेश से यहां लोग गंगा में डुबकी लगा अपने पाप धोने आते हैं और यहां के मंदिरों और घाटों के दर्शन कर पुण्य कमाते हैं. लेकिन राम रमापति बैंक एक ऐसा बैंक है जिसमें लोग अपने कमाए हुए पुण्य को जमा कराने आते हैं. ऐसा करने के लिए वे इस बैंक में बकायदा खाता खुलवाते हैं. इस बैंक में पुण्य की मुद्रा के रूप में राम का नाम चलता है. जिसे लोग महीनों तक कॉपियों में दर्ज कराने के बाद इस बैंक में जमा कराने पहुंचते हैं.
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अबतक इस बैंक में 25 अरब से अधिक राम नाम जमा हो चुके हैं और यहां खातेधारकों की संख्या लाखों में हैं. यहां केवल देश के ही नहीं विदेशों के रामभक्तों ने भी खाता खुलवा रखा है. यह बैंक वाराणसी के विश्वनाथ गली के एक मकान में स्थित है. पुण्य कर्मों को सहेज कर रखने वाले इस बैंक में खाता खुलवाना इतना आसान भी नहीं है. इसके लिए अचार विचार संबंधित कई नियमों को मानना पड़ता है. राम नाम का कर्ज लेने वालों के लिए जो नियम हैं, उसमें मदिरा, मांस, मछली,प्याज, लहसुन इत्यादि चीजों को खाने की मनाही है. इन नियमों को पूरा करने का वचन देने वालों को ही यहां से राम नाम लिखने का कागज़ मिलता है और उसी पर इन्हें राम का नाम लिखना होता है.
राम रमापति बैंक में खाता खुलवाने के लिए इसका फॉर्म भरना होता है. इस फॉर्म में उनके नाम पते के साथ उनकी मनोकामना भी लिखी जाती है. इस फॉर्म को पूरी तरह गोपनीय रखा जाता है. इस बैंक के खाताधारक रामभक्तों का मानना है कि जिस राम नाम की पूंजी को वो यहां जमा करते हैं, उससे इनका यह लोक तो सुधरेगा ही साथ ही इसके ब्याज से इनका परलोक भी सुधर जाएगा. Next…
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