त्रेता युग में यूं तो कई बलशाली योद्धाओं ने युद्ध लड़े और पृथ्वी पर राज स्थापित किया। लेकिन, महाबलशाली बाली का हनुमान को युद्ध के लिए चुनौती देना संसार के लिए प्रलयकारी साबित हो गया। इस युद्ध को टालने के लिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्मदेव को स्वयं धरती पर आना पड़ा। इसके बावजूद दोनों योद्ध मैदान में आ डटे। इस युद्ध का वर्णन कई पुराणों और शास्त्रों में मिलता है।
ऋक्षराज के पुत्र का उत्पात
शास्त्रों के अनुसार त्रेता युग में किष्किंधा नगरी पर वानरराज ऋक्ष का शासन था। ब्रह्मदेव के वरदान और अंश से ऋक्षराज को बाली और सुग्रीव नाम के दो पुत्र प्राप्त हुए। बाली को देवराज इंद्र ने ब्रह्मदेव के मंत्रों वाला एक हार वरदान स्वरूप दिया था। इस हार की खूबी यह थी कि जब भी बाली वह हार पहनकर युद्ध लड़ेगा तो सामने वाले योद्ध की आधी शक्ति उसके शरीर में समाहित हो जाएगी।
वनों और सरोवरों को किया तहसनहस
ब्रह्मदेव के वरदान और इंद्र की कृपा से बाली से कोई भी योद्धा जीत नहीं पाता था। उसने कई बलशाली असुरों और वीरों को चुटकी में धूल चटा दी थी। अपनी ताकत के घमंड में किष्किंधा के युवराज बाली ने उत्पात शुरू कर दिया। सरोवर को मिट्टी में मिलाता हुआ बाली उस वन में पहुंच गया जहां रामभक्त हनुमान अपने आराध्य की तपस्या में लीन थे।
हनुमान से भिड़ बैठा बाली
बाली के उत्पात से हनुमान की तपस्या में विघ्न उत्पन्न होने लगा। इस पर हनुमान ने बाली की प्रशंसा करते हुए निवेदन किया कि वह शांत हो जाए और उत्पात न मचाए। गुस्साए बाली ने हनुमान और उनके आराध्य को युद्ध की चुनौती देने लगा। समझाने के बाद भी बाली नहीं माना तो हनुमान युद्ध के लिए तैयार हो गए। भगवान हनुमान और बाली के बीच युद्ध की घोषणा होते ही सृष्टि में हाहाकार मच गया। इंद्रदेव और ब्रह्मदेव चिंतित हो गए।
सृष्टि में हाहाकार मचा
युद्ध के कारण होने वाली प्रलय को रोकने के लिए स्वयं सृष्टि के रचयिता ब्रह्मदेव धरती पर अवतरित हुए और हनुमान से मिलने पहुंचे। ब्रह्मदेव ने हनुमान से युद्ध न लड़ने की विनती की लेकिन हनुमान नहीं माने। हनुमान ने कहा कि बाली ने यदि उनका अपमान किया होता तो वह उसे क्षमा कर देते लेकिन बाली ने अहंकार में आकर उनके आराध्य को कटुवचन कहे हैं तो उसे इसका परिणाम भुगतना ही होगा।
ब्रह्मदेव ने की हनुमान से विनती
हनुमान का क्रोध देखकर ब्रह्मदेव ने हनुमान से कहा कि वह युद्ध में अपनी ताकत का केवल 10वां भाग लेकर ही जाएं बाकी देहरी में बांध दें अन्यथा सृष्टि नष्ट हो जाएगी। हनुमान ने ब्रह्मदेव की बात मान ली और अपने बल का केवल 10वां हिस्सा लेकर युद्ध के लिए बाली के समक्ष पहुंच गए।
बाली के शरीर में पहुंचा हनुमान का आधा बल
विरोधी योद्धा का आधा बल हासिल करने का वरदान पाने वाला बाली जब युद्ध के लिए हनुमान के सामने आया तो हनुमान का आधा बल उसके शरीर में समा गया। हनुमान का बल जैसे ही उसके शरीर में समाया तो उसका आकार बढ़ने लगा और उसका शरीर फूलने लगा। अथाह बल समाहित होने से उसके शरीर की नसें फटने लगीं। बाली का शरीर इतना अधिक बल नहीं संभाल पा रहा था और उसकी हालत खराब हो रही थी।
असीमित ताकत नहीं संभाल पाया बाली
इस बीच ब्रह्मदेव वहां पधारे और बाली के कान में कहा कि उससे युद्ध के लिए हनुमान अपने बल का केवल 10वां हिस्सा लेकर ही आए हैं। अगर वह अपना सारा बल लेकर आ जाते तो तुम्हारी क्या दशा होती। हनुमान के पास इतना बल है कि अगर कुछ देर और तुम युद्धस्थल पर रुके तो तुम्हारा शरीर फट जाएगा और तुम बिना युद्ध लड़े ही मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। इसलिए जीवनरक्षा चाहते हो तो हनुमान से जितना दूर हो सके भाग जाओ।
बिना युद्ध के मैदान छोड़ भागा बाली
ब्रह्मदेव की बात सुनकर घबराया बाली मैदान से बिना युद्ध लड़े ही भाग निकला। युद्धस्थल से कई योजन दूर जाने के बाद उसे राहत मिली और उसका शरीर ठीक हुआ। तब बाली को अपनी ताकत का घमंड दूर हो गया। इसके बाद बाली ने हनुमान से अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगी और फिर कभी बेवजह युद्ध न करने का निर्णय लिया।…Next
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