पुराणों और शास्त्रों में कई जगह रावण का वर्णन मिलता है। उसे महाबलशाली, महायोद्धा, प्रकांड विद्वान और परम ज्ञानी बताया गया है। ब्रह्मदेव की मानस संतान पुलत्स्य ऋिषि का पौत्र और विश्रवा ऋिषि का पुत्र था।रामायण में भगवान राम और असुर राजा रावण के युद्ध की गाथा का वर्णन विस्तार से किया गया है। रामायण के अनुसार अंत में रावण भगवान राम के हाथों पराजित होता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। राम के हाथों हारने से पहले महाबली रावण को 4 अन्य महाबली योद्धाओं ने अलग अलग समय पर पराजित किया था। आइए जानते हैं वे कौन महाबली योद्धा थे जिन्होंने महाबलशाली रावण को परास्त किया था।
वानरराज के सामने आधा हुआ रावण का बल
तेज बल और तीक्ष्ण बुद्धि के अहंकार में रावण ने पृथ्वी के प्रमुख हिस्से के अधिपति राजा बाली को युद्ध की चुनौती दे दी। किष्किंधा का राजा बाली वानर राज सुग्रीव का बड़ा भाई था और उसके शरीर में विपक्षी योद्धा का आधा बल समा जाने का वरदान हासिल था। जब रावण युद्ध के लिए पहुंचा तो राजा बाली ने पूजा कर रहा था। रावण के उकसाने पर गुस्साए राजा बाली ने उसे अपनी कांख यानी बाजू में दबा लिया। तमाम प्रयासों के बावजूद रावण बाजू से नहीं निकल सका और जब उसका दम घुटने लगा तो हार स्वीकार कर ली। जीवनदान देने की याचना पर बाली ने रावण को छोड़ दिया।
दस सिर लेकर हजार हाथों वाले राजा से लड़ने पहुंचा
माहिष्मती साम्राज्य के हैहयवंशीय शासक कार्तवीर्य और रानी कौशिकी के पुत्र सहस्त्रबाहु अर्जुन को ऋिषि दत्तात्रेय ने एक हजार भुजाओं का वरदान दिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार नर्मदा नदी में स्नान कर रहे सहस्त्रबाहु ने अपनी रानियों को प्रसन्न करने के लिए नर्मदा का प्रवाह रोक दिया। इसी समय रावण दूसरे छोर पर कुछ दूरी पर नदी किनारे भगवान शिव की पूजा कर रहा था। अचानक नर्मदा का प्रवाह रुकने पर रावण ने कारण जानना चाहा तो सैनिकों ने सहस्त्राबाहु के बारे में उसे बताया। गुस्से से बौखलाए रावण ने अपने दस सिरों के साथ सहस्त्रबाहु से लड़ने पहुंच गया। सहस्त्रबाहु ने नर्मदा का प्रवाह छोड़ा तो रावण की सेना जलधारा में बह गई। सहस्त्रबाहु ने रावण को बंदी बना लिया। बाद में रावण के दादा पुलत्स्य ऋिषि के निवेदन पर सहस्त्रबाहु ने रावण को छोड़ दिया।
पृथ्वी और स्वर्ग जीतने वाले राजा बलि को चुनौती दी
पृथ्वी के अधिकांश भाग पर कब्जा करने के बाद रावण को पाताल लोक पर भी कब्जा करने की धुन सवार हो गई। उस वक्त पाताललोक पर महाबलशाली और महादानी राजा बलि का शासन था। राजा बलि इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने इंद्र को हराकर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। बाद में बामनरूप में विष्णु भगवान ने उनसे समस्त राजपाट दान में ले लिया था। पाताललोक में रावण अपनी ताकत के गुरुर में जा पहुंचा और राजा बलि को ललकारने लगा। पाताललोक में मौजूद बच्चों ने रावण को समझाया कि वह वापस लौट जाए। पर रावण नहीं माना तो बच्चों ने उसे वहीं कैदकर अस्तबल में डाल दिया। दरअसल, पातलालोक में किसी अन्य लोक की शक्तियां काम नहीं करती थीं, इसलिए रावण पाताललोक में शक्तिविहीन हो गया। बाद में रावण ने राजा बलि से क्षमायाचना की और जीवनदान देने का निवेदन किया। राजा बलि महादानी थे और उन्होंने रावण का निवेदन स्वीकार कर छोड़ दिया।
कैलाश पर्वत उठाया तो शिव ने सबक सिखाया
भगवान शिव का परमभक्त रावण उनसे हर तरह के वरदान हासिल कर चुका था। भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर रावण को दस सिर, शिव पतास्त्र और कभी भी स्मरण करने पर प्रकट होने का भी वरदान दे चुके थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार रावण ने भोलेनाथ को अपने समक्ष प्रकट करने के लिए उनका स्मरण किया। तब भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर ध्यान में लीन थे। भोलेनाथ के प्रकट नहीं होने पर अहंकारी रावण ने कैलाश पर्वत को नष्ट करने और भोलेनाथ का ध्यान भंग करने के इरादे से कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश को उठाने लगा। तमाम देवों, असुरों और ऋिषियों के समझाने पर भी रावण नहीं माना और अहंकार में भगवान शिव को चुनौती दे दी। भगवान शिव ने रावण का अहंकार तोड़ने के लिए अपने पैर का अंगूठा कैलाश पर रखकर पर्वत का भार बढ़ा दिया। इसके बाद रावण कैलाश को हिला भी नहीं सका और अंत में हार मानकर क्षमा याचना करने लगा। भगवान शिव ने उसे क्षमा कर दिया।…Next
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