वेदों और पुराणों में कर्मों के प्रभाव का वर्णन मिलता है. जिसमें कहा गया है कि ‘मनुष्य जैसा करता है वैसा ही भरता है’ यानि कर्म एक निरंतर चलने वाले उस चक्र का नाम है जिसमें मनुष्य के कर्मों का फल, भूतकाल में किए गए कर्मों पर आधारित होता है. समय के प्रभाव से चाहे कोई मनुष्य अपने द्वारा किए गए कर्मों को भूल भी जाए परंतु नियति हमेशा कर्मों का लेखा-जोखा अपने पास रखती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि मनुष्य के द्वारा अनजाने में भी किए गए बुरे कर्मों का फल उसे जरूर मिलता है.
आज भी मृत्यु के लिए भटक रहा है महाभारत का एक योद्धा
ऐसी ही एक कहानी महाभारत से जुड़े खंड वनपर्व में मिलती है. जिसमें 13 वर्ष का वनवास काट रहे धर्मराज युधिष्ठिर एक बार अपने और अपने परिवार द्वारा भूतकाल में किए गए कर्मों का मनन-चितंन कर रहे थे. वो स्वयं से बार-बार एक ही प्रश्न कर रहे थे कि आखिर उनके द्वारा ऐसा कौन-सा बुरा कर्म हुआ है जिसके कारण वो भाईयो और पत्नी सहित आज 13 वर्ष का वनवास काट रहे हैं. उनकी जिज्ञासा को देखते हुए वन के समीप से गुजर रहे मार्कण्डेय ऋषि युधिष्ठिर से बोले कि ‘धीर धरो बालक. तुम जैसा एक योद्धा एक और था जो राजा का बेटा था. उससे भी ऐसे ही राज छुड़ा लिया गया था. वो भी बिना किसी गलती के जंगल-जंगल भटका.
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पत्नी को कोई हर ले गया था इसलिए हजार चुनौतियों का सामना करते हुए उन्होंने अपनी पत्नी को सम्मानपूर्वक प्राप्त करने के लिए धर्मयुद्ध किया. वहीं अगर तुम्हारी दशा की तुलना की जाए तो फिर भी तुम अपने कर्मों का फल भोग रहे हो. क्योंकि भरे दरबार में अपनी पत्नी का निरादर किए जाने पर भी तुम और तुम्हारे भाई मौन रहे. दूसरी तरफ सबकुछ दांव पर लग जाने पर भी पत्नी को किसी वस्तु की तरह दांव पर लगा दिया. ये सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर को अपने कर्मों का ज्ञान हुआ. धर्मराज ने कहा ‘ मैं समझ गया वो योद्धा प्रभु श्रीराम थे. जिन्होंने बिना किसी अपराध के 14 वर्ष का वनवास काटा. इस तरह मार्कण्डेय ऋषि ने उन्हें महाभारत के दौरान रामायण की कहानी सुनाई. ये वो मौका था जब एक महागाथा में दूसरी महागाथा चल रही थी…Next
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