श्याम रंग, लुभावने नैन-नक्श और मुस्कुराता चेहरा…भगवान श्रीकृष्ण की विशेषताओं का वर्णन करना बहुत ही कठिन है। आपने श्रीकृष्ण की प्रतिमा को तो जरूर देखा होगा, जरा सोचिए जब श्रीकृष्ण की प्रतिमा इतनी सुंदर और मनमोहक होती है तो द्वापर में जन्में श्रीकृष्ण कितने सुंदर होंगे। धार्मिक कथाओं के अनुसार ऐसी धारणा रही है कि श्रीकृष्ण की छवि बचपन में इतनी मनोहारी थी कि पूरे गांव की महिलाएं श्रीकृष्ण के बालरूप को देखने के लिए यशोदा मईया से, कन्हैया को एक बार देखने के लिए निवेदन किया करती थी,जिसके बाद माता यशोदा अपने पुत्र कन्हैया की कई बार नजर उतारा करती थी।
द्वापर में श्रीकृष्ण के जन्म लेने पर स्वर्गलोक में सभी देवतागण श्रीकृष्ण से मिलने के लिए व्याकुल थे, लेकिन श्रीकृष्ण का जन्म किसी उद्देश्य के लिए हुआ था, जिसे पूरा किए बिना श्रीकृष्ण वैकुंठ नहीं लौट सकते थे। देवताओं के श्रीकृष्ण से मिलने की एक कहानी ‘भागवतपुराण’ में मिलती है, जिसमें भगवान शिव के श्रीकृष्ण के दर्शन करने के लिए नंदलाल और यशोदा के घर जाने का प्रसंग जुड़ा हुआ है।
शिव को देखकर डर गई थी माता यशोदा
एक दिन कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव की तीव्र इच्छा भगवान श्रीकृष्ण से मिलने की हुई। वो बिना किसी को कुछ बताए, श्रीकृष्ण से मिलने गोकुल पहुंच गए। वहां उन्होंने एक साधु का रूप धारण कर लिया लेकिन विषपान करने के कारण भगवान शिव का नीला पड़ चुका रंग इसलिए वे साधु के वेश में भी नीले ही प्रतीत हो रहे थे।
माता यशोदा ने जब साधु का रूप धारण किए शिव को देखा तो उनका रूप देखकर वो अत्यंत भयभीत हो गई। उन्होंने ममतावश अपने पुत्र कन्हैया को शिव से मिलने नहीं दिया और वहां से आदरपूर्वक प्रस्थान करने के लिए कहा।
श्रीकृष्ण से मिलने के लिए 12 हजार साल तपस्या की भगवान शिव ने
भगवान शिव ने श्रीकृष्ण से मिलने के लिए, मथुरा स्थित बने एक ताल के पास बैठकर तपस्या करनी प्रारंभ कर दी। उन्हें विश्वास था कि एक दिन श्रीकृष्ण इस ताल के पास अवश्य आएंगे। शिव ने 12 हजार वर्षों तक श्रीकृष्ण से मिलने की प्रतीक्षा की. तत्पश्चात 12 हजार वर्ष के बाद श्रीकृष्ण, भगवान शिव से मिलने मथुरा के उस ताल पर गए।
श्रीकृष्ण, भगवान शिव के प्रेम को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मथुरा स्थित इस ताल का नाम ‘शिवताल’ रख दिया। आज हजारों वर्षों बाद भी मथुरा स्थित इस ताल को ‘शिवताल’ नाम से जाना जाता है…Next
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