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भगवान शिव के तीसरे नेत्र से भस्म होकर श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में जन्मे थे कामदेव

भगवान शिव को उनके सीधे और सरल स्वभाव के कारण भोले नाथ कहा जाता है, वहीं अपने सरल स्वभाव से परे भगवान शिव अपने रौद्र रूप और क्रोध के लिए भी जाने जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव को जब भी क्रोध आता था, उनका तीसरा नेत्र खुल जाता था, जिससे संपूर्ण पृथ्वी अस्त-व्यस्त हो जाती थी। ऐसा ही प्रसंग है भगवान शिव और कामदेव से जुड़ा हुआ, जब भगवान कामदेव को महादेव ने भस्म कर दिया था। महादेव ने जब कामदेव को भष्म कर दिया, तो उनकी पत्नी रति विलाप करने लगी। जब शिव का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने रति को वचन दिया कि उनका पति श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेगा।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal24 Jul, 2019

 

 

देवी सती के आत्मदाह के बाद वैरागी हो गए थे शिव

जब दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ में भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को छोड़कर सारे देवताओं को आमंत्रित किया, तो देवी सती को अपने पति महादेव का ये तिरस्कार देखा नहीं गया। उन्होंने यज्ञ में बैठकर आत्मदाह कर लिया। भगवान शिव ने सती की मृत्यु के बाद समस्त संसार को त्याग दिया. उनके वैरागी होने से संसार सुचारू रूप से नहीं चल पा रहा था. दूसरी तरफ पार्वती के रूप में सती ने पुर्नजन्म लिया। इस बार भी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा जताई लेकिन शिव के मन में प्रेम और काम भाव नहीं था। इस वजह से भगवान विष्णु और सभी देवताओं ने संसार के कल्याण के लिए कामदेव की सहायता लेने की योजना बनाई।

 

kamdev

 

अपनी पत्नी देवी रति के साथ मिलकर कामदेव शिव के भीतर छुपा काम भाव जगाने लगे। उस समय भगवान शिव तपस्या में लीन थे। प्रेम गीत के स्वर सुनकर शिव कुपित हो उठे और उन्होंने तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। अपने पति की राख को अपने शरीर पर मलकर देवी रति विलाप करने लगी और शिव से न्याय मांगने लगी। जब शिव को ज्ञात हुआ कि ये सब संसार के कल्याण के लिए देवताओं की बनाई योजना थी, तो शिव ने रति को वचन दिया कि उनका पति यदुकुल में श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेगा। 

 

lord shiva

 

शम्बासुर के महल में दासी बनकर रहने लगी रति

अपने पति की प्रतिक्षा में रति शम्बासुर के यहां दासी बनकर रहने लगी। दूसरी तरफ कामदेव श्रीकृष्ण की पत्नी के गर्भ में स्थापित हो गए। 9 महीने बाद श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जन्म हुआ। जब शम्बासुर को पता चला कि उसके प्राण हरने वाला अवतरित हो चुका है, तो वो वेश बदलकर प्रसूतिका गृह से उस दस दिन के शिशु को उठा लाया और समुद्र में डाल दिया। समुद्र में उस शिशु को एक मछली निगल गई और उस मछली को एक मगरमच्छ ने निगल लिया। वह मगरमच्छ एक मछुआरे के जाल में आ फंसा जिसे कि मछुआरे ने शम्बासुर की रसोई में भेज दिया। जब उस मगरमच्छ का पेट फाड़ा गया तो उसमें से अति सुन्दर बालक निकला। उसको देख कर शम्बासुर की दासी हैरान रह गई। तभी वहां नारद मुनि प्रकट हुए और उन्होंने बताया कि ये कामदेव का पुर्नजन्म लिए श्रीकृष्ण पुत्र प्रद्युम्न है. ये सुनकर रति बहुत प्रसन्न हुई।

 

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शम्बासुर का वध करके रति के साथ श्रीकृष्ण के पास पहुंचे प्रद्युम्न

युवा होने पर प्रद्युम्न ने शम्बासुर का वध कर दिया और देवी रति के साथ द्वारिका पहुंचे। प्रद्युम्न श्रीकृष्ण के समान ही विशाल और सुंदर दिखते थे। रूकमणि ने अपने पुत्र को पहचान लिया। तब वहां नारद मुनि ने प्रकट होकर सभी को पूरी कहानी सुना दी. …Next

 


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