असहनीय पीड़ा, सफलता में बाधा और दुश्मन से मुक्ति के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा का विधान शास्त्रों में बताया गया है। मान्यताओं के अनुसार कार्तिकेय भगवान को चंपा के पुष्प अति प्रिय हैं इसलिए जो भी साधक स्कंद षष्ठी के दिन चंपा के फूलों से पूजा करेगा उसकी समस्याओं का समूल नाश हो जाएगा। ये भी मान्यता है कि रंजिश और लंबे समय से चल रहे विवाद को खत्म करने के लिए भी स्कंद षष्ठी की पूजा और व्रत लाभदायक साबित होते हैं।
स्कंद षष्ठी और कार्तिकेय
मान्यताओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय के लिए स्कंद षष्ठी तिथि समर्पित है। कार्तिकेय को संकटों से मुक्ति दिलाने का देवता माना जाता है। ऐसा कहा है कि जब सृष्टि में हाहाकार मच गया तो शांति कायम करने और दुख पीड़ाओं को हरने के लिए कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने देवताओं की भी बड़ी पीड़ा को चुटकियों में दूर कर दिया था। तब से किसी भी संकट से बचने के लिए स्कंद षष्ठी के दिन कार्तिकेय की पूजा का विधान है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के अधिपति ताड़कासुर के आतंक से घबराए देवताओं को स्वर्ग की चिंता सताने लगी। देवता ब्रह्मदेव के पास पहुंचे तो वहां पता चला कि ताड़कासुर केवल शिव और पार्वती पुत्र के हाथों ही मर सकता है। इस दौरान शिव पुत्र कार्तिकेय माता पिता से नाराज होकर कैलाश छोड़ चुके थे।
देवताओं की पीड़ा
देवताओं ने कार्तिकेय की खोजबीन शुरू की तो वह दक्षिण भारत के मल्लिकार्जुन पर्वत पर तपस्या में लीन मिले। लंबे समय तक इंतजार के बाद जब कार्तिकेय ने आंखें खोलीं तो देवताओं ने ताड़कासुर के आतंक का हाल सुना दिया और मदद करने की विनती की। कार्तिकेय ने देवताओं की पीड़ा और उनके सिंहासन पर आए संकट को भांपकर मदद करना स्वीकार किया।
ताड़कासुर का वध
देवताओं ने कार्तिकेय को अपना सेनापति बनाया और ताड़कासुर से युद्ध प्रारंभ हो गया। कार्तिकेय ने देखते ही देखते ताड़कासुर का वध कर दिया और देवताओं की रक्षा की। इस तरह देवताओं के पुराने दुश्मन का अंत हो गया। मल्लिकार्जुन पर्वत पर कार्तिकेय के आंखें खोलने पर उन्हें स्कंद देव नाम से भी जाना गया। कार्तिकेय मंगल ग्रह के स्वामी हैं और वह हर माह की स्कंद षष्ठी के दिन अपने भक्तों के दुख दूर करने के लिए उनकी प्रार्थना सुनते हैं।
स्कंद षष्ठी का शुभ मुहूर्त
मान्यताओं के अनुसार सभी तरह के दुखों को दूर करने के लिए स्कंद षष्ठी के दिन कार्तिकेय यानी स्कंद देव की पूजा और व्रत रखने का विधान बताया गया है। हिंदू कैलेंडर द्रिक पंचांग के अनुसार इस बार स्कंद षष्ठी फरवरी माह की 29 तारीख को सुबह 09:09 से प्रारंभ हो रही है और यह एक मार्च को सुबह 11:15 बजे समाप्त हो जाएगी। यह स्कंद देव यानी कार्तिकेय भगवान की पूजा का शुभ महूर्त है। इस घड़ी में ही पूजा का विधान शास्त्रों में बताया गया है।
पूजा विधि और चंपा के फूल
स्कंद देव यानी कार्तिकेय भगवान की पूजा के लिए प्राताकाल गंगाजल से स्नान करने के पश्चात दक्षिण दिशा की ओर कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद उन्हें चंदन अक्षत के साथ चंपा के पुष्प अर्पित करने चाहिए। कहा जाता है कि कार्तिकेय को चंपा के पुष्प बेहद प्रिय हैं और उन्हें जो भी साधक ये पुष्प भेंट करता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। पूजा के बाद भोज कराना शुभ माना गया है। इस विधि का पालन करने वाले साधकों के सभी तरह के दुखों का नाश होने के साथ ही तरक्की का नया रास्ता खुल जाता है।…Next
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