किसी स्थान विशेष के रीति-रिवाज वहां की मान्यता बन जाते हैं और हमारे देश में तो 33 करोड़ देवी-देवता हैं. प्रत्येक से जुड़ी सैकड़ों कहानियां है, पर जो हमारे लिए कहानी है वो उस स्थान विशेष के स्थानीय लोगों की मान्यता या रिवाज़ है. हिन्दू देवी-देवताओं में सर्वोपरि शिव-पार्वती जी से संबंधित बहुत सी पौराणिक कथाएं आपको मिल जाएंगी.
ऐसी ही एक कथा मां दुर्गा के श्राईकोटि स्वरूप के संबंध में प्रचलित है. यूं तो भगवान शिव जैसा पति पाने के लिए कुंवारियां उनके सोलह सोमवार करती है और शादीशुदा जोड़े अपने सुखी जीवन के लिए साथ में भगवान शिव और मां पार्वती के दर्शन को जाते हैं, ताकि सौभाग्य और साथ बना रहे, लेकिन हिमाचल प्रदेश में इस श्राईकोटि माता मंदिर की एक मान्यता है कि कोई भी शादीशुदा जोड़ा साथ में यहां माता के दर्शन हेतु नहीं जा सकता. यदि पति- पत्नी साथ जाते है, तो उन्हें वियोग सहना पड़ता है.
देखा जाएं तो ये मान्यता हिन्दू धर्म के कर्मकांडों से बहुत अलग है क्योंकि हिन्दू धर्म में न केवल पूजा-पाठ बल्कि हवन और पूजा से जुड़ी सभी विधियां पति–पत्नी एक साथ बैठकर करते हैं. फिर ऐसा क्या है कि सिर्फ इसी मंदिर में शादीशुदा जोड़े साथ नहीं जा सकते?
दरअसल इसके पीछे एक पौराणिक कथा है किदेवभूमि हिमाचल प्रदेश में जिला शिमला के रामपुर में समुद्र तल से 11000 फुट की ऊंचाई पर माँ दुर्गा का एक स्वरुप विराजमान है जो की श्राई कोटि माता के नाम से बहुत प्रसिद्ध है. मंदिर के बारे मैं एक ख़ास बात यह है की यहां दम्पति एक साथ दर्शन नहीं कर सकते अर्थात् पति-पत्नी के द्वारा एक साथ पूजन यहाँ निषेध माना गया है. यहां पर दोनों पति-पत्नी जाते तो हैं, किन्तु एक बाहर रह कर दूसरे का इंतज़ार करता है. यदि ये लोग ऐसा नहीं करते तो माना जाता है कि जोड़े का अलग होना निश्चित है.
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मंदिर के पुजारी वर्ग के अनुसार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों गणेश जी तथा कार्तिकेय जी को समग्र ब्रह्मांड का चक्कर काटने को कहा था. उस समय कार्तिकेय जी तो भ्रमण पर चले गए, किन्तु गणपति जी महाराज ने माता-पिता के चक्कर लगा कर ही यह कह दिया था कि माता-पिता के चरणों में ही ब्रह्मांड है. जब कार्तिकेय जी वापस पहुंचे तब तक गणपति जी का विवाह हो चुका था, यह देख कर कार्तिकेय जी महाराज ने कभी विवाह न करने का निश्चय किया था.
श्राईकोटी में आज भी द्वार पर गणपति जी महाराज अपनी पत्नी सहित विराजमान है. कार्तिकेय जी के विवाह न करने के प्रण से माता बहुत रुष्ट हुई थी, तब उन्होंने कहा कि जो भी पति-पत्नी यहां उनके दर्शन करेंगे, उस दम्पति का बिछड़ना तय होगा. इस कारण आज भी यहां पति- पत्नी एक साथ पूजा नहीं करते. अगर फिर भी कोई ऐसा करता है मां के श्राप अनुसार उसे ताउम्र एक दूसरे का वियोग सहना पड़ता है.
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यह मंदिर सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र है. इस मंदिर की देख- रेख माता भीमाकाली ट्रस्ट के पास है. जंगल के बीच मंदिर का रास्ता अधिक मनमोहक लगता है. माता के दर्शन के लिए सबसे पहले शिमला पहुंचना होगा. इसके बाद निजी वाहन या बस के माध्यम से नारकंडा और फिर मश्नु गावं के रास्ते से होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है.Next…
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