शिवपुराण में ऐसी कई कहानियों का उल्लेख मिलता है, जिनका सम्बध वर्तमान की चीजों से है। आज हम आपको उस जगह के बारे में बताएंगे, जो भगवान शिव और कामदेव से जुड़ी हुई है।
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित कामेश्वर धाम, वह स्थान है जहां, शिवजी ने कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया था। इसी कारण इस जगह का नाम कामेश्वर धाम पड़ा। आज भी यह स्थान भक्तों की आस्था का केंद्र है और दूर-दूर से भक्त यहां दर्शन करने आते हैं।
माना जाता है भगवान शिव ने यहां कामदेव को जलाकर भस्म किया था। इस वजह से इस जगह को कामेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है।
इस कारण से कामदेव को शिव ने किया था भस्म
राजा दक्ष ने जब महायज्ञ में भगवान शिव और सती को निमंत्रित नहीं किया, तो माता सती ने इसे अपमान समझा और राजा दक्ष के महल में हवनकुंड में जाकर आत्महत्या कर ली। माता सती के शरीर के नष्ट हो जाने पर विष्णुजी सहित सभी देवता शिवजी से शांत होने की विनती की। इस पर शिव परमशांति की प्राप्ति के लिए गंगा और तमसा नदी के संगम पर समाधि ले लेते हैं। वहीं सती पार्वती के रूप में पुर्नजन्म लेती हैं और भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें पति के रूप में मांगती हैं। भगवान शिव पार्वती से विवाह तो कर लेते हैं किंतु उनके मन में मोह या प्रेम की भावना नहीं आती। उधर राक्षस तारकासुर ब्रह्माजी की तपस्या कर उनसे वर मांग लेता है कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र ही कर सकता है। वरदान मिलते ही वह स्वर्ग पर आधिपत्य का प्रयास करने लगता है और सभी देवताओं को हानि पहुंचाने लगता है। राक्षस का वध करने के लिए शिव और पार्वती का मिलन कराना बहुत जरूरी था।
जिस वजह से सभी देवता कामदेव को अपना सेनापति नियुक्त करके भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करते हैं। कामदेव तपस्या में लीन शिव के ऊपर पुष्पबाण चलाते हैं। इससे शिवजी की तपस्या भंग हो जाती हैं और क्रोध के कारण उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है, जिससे आम के वृक्ष के पीछे छिपे कामदेव जलकर भस्म हो जाते हैं।
शिव पुराण में वर्णित इस कथा के साक्ष्य के तौर पर हम आज भी कामेश्वर धाम में वह आम का आधा जला हुआ पेड़ देख सकते हैं, जिसके पीछे कामदेव छिपे थे और जलकर भस्म हो गए थे। एक अजेय वृक्ष की तरह यह पेड़ आज भी खड़ा है। कालांतर में कई राजाओं और मुनियों की तपस्थली रहा है यह कामेश्वर धाम। बाल्मिकी रामायण के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ यहां आए थे।
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